SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 36
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्तमान क्षण की प्रेक्षा स्वरूप क्षण को जानना • खणं जाणाहि पडिए। आयारो २१२४ हे साधक | तुम क्षण को जानो। इणमेव खण वियाणिआ। सूपगडो ११२१७३ इस क्षण को जानो। • मणसहिएण उ काएण, कुणइ वायाइ भासई जंच। एवं च भावकरण, मणरहिअ दव्वकरण तु।। कायोत्सर्ग शतक गाथा ३७ शरीर और वाणी की प्रत्येक क्रिया भावक्रिया बन जाती है, जब मन की क्रिया उसके साथ होती है, चेतना उसमे व्याप्त होती है। प्रक्रिया भावक्रिया : गमन योग • इदियत्ये विवज्जिता सज्झाय चेव पचहा । तम्मुत्ती तप्पुरकारे, उवउत्ते इरिय रिए।। उत्तरायणाणि २४१८ इन्द्रियो के विषयो और पाच प्रकार के स्वाध्याय का वर्जन कर, ईर्या मे तन्मय हो, उसे प्रमुख बना, उपयोग जागरूकतापूर्वक चले। • तच्चित्ते तम्मणे तल्लेसे तदज्झवसिए तत्तिव्वज्झवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पियकरणे तब्मावणाभाविए अण्णत्य कत्थइ मणं अकरेमाणे। अणुओगहाराई सू० २७
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy