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________________ आगम और आगमेतर स्रोत ३३ असायावेयणिज्ज च ण कम्म नो भुज्जो भुज्जो उवचिणाइ । अणाइय च ण अणवदग्ग दीहमद्ध चाउरत ससारकंतार खिप्पामेव वीइवयइ।। उत्तरज्झयणाणि २६१२३ भते । अनुप्रेक्षा से जीव क्या प्राप्त करता है ? अनुप्रेक्षा से वह आयुष-कर्म को छोडकर शेप सात कर्मों की गाढ-बन्धन से वन्धी हुई प्रकृतियो को शिथिल बन्धन वाली कर देता है, उनकी दीर्घकालीन स्थिति को अल्पकालीन कर देता है, उनके तीव्र अनुभव को मन्द कर देता है। उनके बहुप्रदेशाग्र को बदल देता है। आयुष्-कर्म का वध कदाचित् करता है, कदाचित् नही भी करता है। असात्-वेदनीय कर्म का बार-बार उपचय नही करता और अनादि, अनन्त, लम्वे मार्गवाली तथा चतुर्गति-रूप चार अन्तोवाली ससार अटवी को तुरन्त ही पार कर जाता है। लक्ष्य प्राप्ति • जो जेण चित्र कुसलेण, कम्मुणा केणइ ह नियमेण । भाविजइ सा तस्सेव, भावणा धम्मसजणणी।। पासनाहचरिअं पृष्ठ ४६० अनेक व्यक्ति नाना भावनाओं से भावित होते है। जो किसी भी कुशल कर्म से अपने आपको भावित करता है, उसकी भावना उसे लक्ष्य की ओर ले जाती है। समता की प्राप्ति • भावनाभिरविश्रान्तमिति भावित-मानस | निर्मम सर्वभावेषु समत्वमवलम्बते।। योगशास्त्र ४१११० जिसका मानस अनवरत भावनाओं से अनुभावित होता है, उसका ममत्व भाव मिट जाता है और वह समत्व का अवलम्वन करता है-समत्व पा लेता है।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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