SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २० प्रेक्षाध्यान संधि की प्रेक्षा • एत्थोवरए त झोसमाणे अय सधी ति अदक्खु । आयारो ५।२० जो आरभ से उपरत है, उसने अनारभ की साधना करते हुए 'यह सधि है ' — ऐसा देखा है । समुट्ठिए अणगारे आरिए आरियपणे आरियदसी अय सधीति अदक्खु । आयारो २।१०६ आर्य, आर्यप्रज्ञ, आर्यदर्शी और सयम मे तत्पर अनगार ने 'यह विवर है' — ऐसा जाना है । करण के प्रकार भगवई ६ । १ । ५ • कतिविहे ण भते । करणे पण्णत्ते ? गोयमा । चउव्विहे करणे पण्णत्ते, त जहा—मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे । प्राणी के पास चार करण होते है— मनकरण, वचनकरण, कायकरण, कर्मकरण | करण और अवधिज्ञान • जस्स ओहिणाणस्स जीवसरीरस्स एगदेसो करण होदि तमोहिणाणमेक्खेत्त णाम । षट्खण्डागम् पुस्तक १३, पृ० २६५ जिसमे जीव-शरीर का एक देश करण बनता है, वह एक क्षेत्र अवधिज्ञान है। • जमोहिणाण पडिणियदखेत्तं वज्जिय सरीरसव्वावयवे वट्टदि तमणेयक्खेत्त णाम । षट्खण्डागम पुस्तक १३, पृ० २६५ जो प्रतिनियत क्षेत्र के माध्यम से नही होता, किन्तु शरीर के सभी अवयवो के माध्यम से होता है - शरीर के सभी अवयव करण बन जाते है, वह अनेक क्षेत्र अवधिज्ञान है ।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy