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________________ चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा प्रयोजन वृत्तियो का परिष्कार, कामासक्ति से मुक्ति • सधि विदित्ता इह मच्चिएहि। आयारो २११२७ पुरुप मरणधर्मा मनुष्य के शरीर की सधि को जानकर कामासक्ति से मुक्त हो। स्वरूप चैतन्य केन्द्र का अर्थ • १ अतीन्द्रियचैतन्योदयहेतुभूत कर्मविवरम् । २ अप्रमादाध्यवसायसन्धानभूत शरीरवर्तीकरण चैतन्यकेन्द्र चक्रमिति यावत्। ___आचारांगभाष्यम् ५।२० १ अतीन्द्रिय चेतना के उदय मे हेतुभूत कर्म-विवर । २ अप्रमाद के अध्यवसाय को जोडनेवाला शरीरवर्ती साधन को चैतन्य केन्द्र या चक्र कहा जाता है। पर्यायवाची शब्द • प्राचीनग्रन्येपु सन्धि-विवर-रन्ध्र-चक्र-कमल करणादीना समानार्थक प्रयोगो दृश्यते। आचारांगभाष्यम् ५।२० प्राचीन ग्रन्थो मे सन्धि, विवर, रन्ध्र, चक्र, कमल, करण आदि शब्दो का प्रयोग समान अर्थ में देखा जाता है।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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