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________________ वह स्त्री बोली : नहीं, कभी नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, यह असंभव है। मैंने तो कभी किसी पुरुष का संसर्ग किया ही नहीं, इसलिए ऐसा कैसे हो सकता है? चिकित्सक बोला : लेकिन यह तो निश्चित तथ्य है, उस स्त्री ने इनकार किया, वह बोली : यह असंभव है, ऐसा नहीं हो सकता। मेरा किसी पुरुष से कभी साथ हुआ ही नहीं। तब वह चिकित्सक बोला : ठहरिए, मुझे अपना सामान बांध लेने दें। मैं आपके साथ चल रहा हूं। वह स्त्री बोली. क्यों? किसलिए? उसने कहा इस बार मैं चूकंगा नहीं। मैंने सुना है कि पूर्व से 'वर्जिन मेरी' का दर्शन करने तीन विद्वान आए थे। इस बार मैं चूकंगा नहीं, मैं आ रहा हं मैं उन तीन विद्वानों को देखना चाहता हूं। बस एक घबड़ाहट भरी परिस्थिति से बचने के लिए ही-जीसस! एक कामक प्रेम संबंध से जन्म लें? लेकिन यह अनुयायियों की मूढ़ता ही दर्शाता है। हमने भारत में कभी ऐसा नहीं किया। हम बुद्ध, महावीर, राम, कृष्णी सभी को काममय प्रेम संबंध से जन्मा हुआ स्वीकार करते हैं। हमने इस भाषा में कभी नहीं सोचा कि काम पाश्विक है। बुद्ध का जन्म भी इसी से होता है। हमें पता है कि कमल उस कीचड़ से बहत अलग है जिससे यह आता है, लेकिन यह कीचड़ से आता है। कीचड़ का सम्मान करना पड़ता है, वरना सारे कमल खो जाएंगे। हां, पानी गंदला है लेकिन 'तुम्हें इसमें जीना है, तुम्हें इसमें होकर गुजरना है, तुम्हें इससे पार जाना है, इसके ऊपर, कहीं दूर, कमल की भांति खिलना है। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि कमल गंदले कीचड़ से आता है। यह परिवर्तित रूप है, यह उत्कांति है। पतंजलि का पूरा प्रयास यही है. तुम्हें बताना कि काम–केंद्र से सहस्रार तक यह वही ऊर्जा है, नये रूपांतरणों से गुजरती हुई, हरेक चक्र पर एक नया दृष्टिकोण, एक नई संभावना, नये पंख, खिलती हुई और-और पंखुड़ियां। काम-केंद्र पर एक कमल है-चार पंखुड़ियों वाला कमल, लेकिन कमल है। भले ही चार पंखुड़ियों वाला हो, किंतु फिर भी कमल ही है। सहस्रार पर यह सहस्र दल कमल बन जाता है, लेकिन फिर भी है तो कमल ही-एक हजार पंखुड़ियों वाला, जैसे कि लाखों सूर्यों और चंद्रमाओं का मिलन हो रहा है। ऊर्जा का एक महत संलयन और संश्लेषण, लेकिन उसी ऊर्जा का। वही ऊर्जा आयुष्मान हो गई है, विकसित हुई है, खिल उठी है। इसलिए मैं तुमसे जो पहली बात कहना चाहूंगा. कृपा करके कामवासना को समस्या की भांति मत देखो। यह समस्या नहीं है। अन्यथा यह समस्या बन जाएगी। अगर कुछ मूढ़ शिक्षाओं के कारण, जो तुम्हारे ऊपर थोप दी गई हैं, और तुम उनके लिए संस्कारित हो चुके हो, तुम अपने जीवन में इससे बचना चाहते हो तो यह समस्या बन जाएगी। यह तुम्हारा पीछा करेगी। यह करीब-करीब प्रेत बन जाएगी, सदा तुम्हारे साथ रह कर तुमसे बातचीत करती रहेगी। यह
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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