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________________ धीरे- धीरे वे तुम्हें एक तरकीब सिखा हर बात को एक निश्चित अनुरूपता है। माता-पिता, लोग, समाज, वे सभी दमन किए चले जाते हैं। देते हैं, और तरकीब है खुद को स्वीकार मत करो, इनकार करो दे दी जानी है। तुम्हारी प्रचंडता को तुम्हारी आत्मा के अंधेरे भाग में धकेल दिया जाता है और एक छोटा सा कोना, ड्राइंग रूम की भांति साफ कर दिया जाता है जहां तुम लोगों से मिल सको, उनके साथ बैठ सको और जी सको और अपने प्रचंड अस्तित्व, अपने यथार्थ अस्तित्व के बारे में सब कुछ भूल सको। तुम्हारे पिता लोग और तुम्हारी माताएं भी इसके लिए उत्तरदायी नहीं हैं क्योंकि उनका लालन पालन भी इसी भांति हुआ था। इसलिए कोई भी उत्तरदायी नहीं है। लेकिन एक बार तुम इसे जान लो, और तुम कुछ भी न करो तो तुम उत्तरदायी हो जाते हो। मेरे निकट रहते हुए, मैं तुम्हें बहुत अधिक उत्तरदायी बनाने जा रहा हूं क्योंकि तुम इसे जान लोगे, और तब तुमने यदि कुछ न किया तो तुम उत्तरदायित्व किसी और पर नहीं थोप सकोगे। फिर तो तुम्हीं उत्तरदायी होने जा रहे हो। अब तुम जानते हो कि किस भांति तुमने अपनी ज्ञानेंद्रियों को नष्ट किया है और किस प्रकार से उन्हें पुनजावित करना है। कुछ करो दमनकारी मन को पूर्णतः बंदूक को पूर्णतः तिलांजलि दो स्वयं को अवरोध मुक्त करो। पुनः प्रवाहमान हो जाओ। अपने अस्तित्व से दुबारा जुड़ना शुरू करो अपनी ज्ञानेंद्रियों से फिर से संबंधित होना शुरू करो तुम एक काटी गई टेलीफोन लाइन जैसे हो सब कुछ पूर्णतः ठीक दिखता है, टेलीफोन मौजूद है, लेकिन लाइन कटी हुई है। इसे पुनः जोड़ लो। अगर इसे काटा जा सकता है तो इसे दुबारा जोड़ा भी जा सकता है दूसरों ने इसे काट दिया है क्योंकि उन्हें भी ऐसे ही सिखाया गया था, लेकिन तुम इसको दुबारा जोड़ सकते हो। मेरे सारे ध्यान प्रयोग तुम्हें प्रवाहमान ऊर्जा प्रदान करने के लिए हैं। इसीलिए मैं उन्हें सक्रिय विधियां कहता हूं। पुराने ध्यान प्रयोग कुछ न करते हुए मात्र मौन बैठना भर थे। मैं तुम्हें सक्रिय विधियां देता हूं क्योंकि जब ऊर्जा का प्रवाह तुममें उमड़ रहा होता है तो तुम शांत बैठ सकते हो, यह काम देगा, लेकिन ठीक अभी, पहले तो तुम्हें जीवंत होना पड़ेगा । 'इसके उपरांत देह के उपयोग के बिना ही कबण बोध और प्रधान (पौद्गलिक जगत) पर पूर्ण स्वामित्व उपलब्ध हो जाता है। ' अगर तुम तन्मात्राओं, अपनी ज्ञानेंद्रियों की सूक्ष्म ऊर्जाओं को देख सकते हो तो तुम अपने बोध का बिना इन स्थूल अवयवों के उपयोग करने में समर्थ हो जाओगे। यदि तुम्हें पता है कि आंख के पीछे , सीधे ही प्रयोग कर सकते हो। तब ऊर्जा का एक संचित कुंड है तो तुम आंखों को बंद करके ऊर्जा को तुम अपनी आंखों को खोले बिना ही देखने में सक्षम हो जाओगे यही तो है। दूरबोध, दिव्य-दृष्टि, दूरस्थ श्रवण
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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