SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंतिम अवरोध यही है, और निःसंदेह यह बहुत मनोहारी है, क्योंकि यह पुण्य का है। यह हीरों से जड़ी हुई सोने की जंजीर जैसा है वे सामान्य जंजीरों की भांति नहीं हैं, वे बिलकुल आभूषण जैसी दिखाई पड़ती हैं। वे जंजीरों के स्थान पर आभूषणों जैसी अधिक हैं। व्यक्ति उनसे बंधना चाहेगा। स्वयं पर बरसती हुई परम आनंद की वर्षा, कभी न समाप्त होने वाला आहलाद, कौन इसको पाना नहीं चाहेगा? इस परमानंद की अवस्था में कौन सदा के लिए रहना नहीं चाहेगा? लेकिन यह भी एक बादल हैश्वेत, मनोहर, लेकिन फिर भी असली आकाश इसके पीछे छिपा हुआ है। उत्कर्ष के इस बिंदु से अब भी वापस गिर पड़ने की संभावना है। यदि तुम धर्ममेघ समाधि से बहुत आसक्त हो जाते हो, यदि तुम बहुत अधिक बंध जाते हो? ऐ तुम इसका बहुत अधिक मजा लेना आरंभ कर देते हो और तुम यह विभेद नहीं कर पाते कि 'मैं यह भी नहीं हूं तो इस बात की संभावना है कि तुम वापस गिर पड़ोगे । ईसाइयत यहूदी धर्म, इस्लाम में केवल दो अवस्थाओं का अस्तित्व है : स्वर्ग और नरक। जिसको ईसाई लोग स्वर्ग कहते हैं उसी को पतंजलि धर्ममेघ समाधि कहते हैं। पश्चिम में कोई धर्म इससे परे नहीं गया है। भारत में हमारे पास तीन शब्द हैं: नरक, स्वर्ग और मोक्ष। नरक है परम पीड़ा, स्वर्ग है परम आनंद, मोक्ष दोनों के पार है : न नरक, न स्वर्ग । पश्चिम की भाषा में मोक्ष के समकक्ष एक भी शब्द नहीं है। ईसाइयत स्वर्ग, धर्ममेघ समाधि पर रुक जाती है। इससे पार जाने की और चिंता अब कौन करता है? इतना मनोहर है यह। और तुम इतने लंबे समय से इतनी अधिक पीड़ा में रहे हो कि तुम वहां सदा और हमेशा के लिए रहना पसंद करोगे। किंतु पतंजलि कहते हैं: यदि तुम इससे आसक्त हो जाते हो, तो तुम सीढ़ी के आखिरी पायदान से फिसल जाते हो। तुम घर के बहुत निकट थे बस एक कदम और और तुमको वह अवस्था उपलब्ध हो गई होती जहां से लौटना संभव नहीं है, लेकिन तुम फिसल गए। तुम बस घर पहुंच ही रहे थे और रास्ते से चूक गए तुम बस द्वार पर ही थे- एक दस्तक और द्वार खुल गए होते- लेकिन तुमने पोर्च को ही महल समझ लिया और तुमने वहीं रहना आरंभ कर दिया, आज नहीं तो कल उस पोर्च को भी खो दोगे, क्योंकि पोर्च उनके लिए है जो महल में रहने जा रहे हैं। इसको आवास नहीं बनाया जा सकता है। यदि तुम इसको आवास लेते हो तो आज नहीं तो कल तुमको निकाल कर बाहर फेंक दया जाएगा. तुम इसके पात्र नहीं हो । तुम उस भिखारी के समान हो जिसने किसी और के पोर्च में इन ! आरंभ कर दिया है। तुमको महल में प्रवेश करना ही पड़ेगा, तभी वह पोर्च तुम्हारे लिए उपलब्ध रहेगा। लेकिन यदि तुम पोर्च पर ही रुक जाते हो तब तुमसे पोर्च भी ले लिया जाएगा। और पोर्च बहुत सुंदर है और हमने उस जैसी कोई चीज कभी नहीं जानी है, इसलिए निश्चित रूप से हमें गलतफहमी हो जाती है हम सोचते हैं कि महल आ गया है। हम सदैव पीड़ा, संताप, तनाव में जीते रहे हैं, और पोर्च भी, उस परम महल के निकट होना भी परम सत्य के इतने निकट होना भी इतना मौन पूर्ण, इतना शांतिमय, इतना
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy