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________________ में जा रहे हो। यह ऐसा है जैसे कि एक लहर सागर के विरोध में होने का प्रयास कर रही हो। अब यह प्रयास ही चिंता और पीडा निर्मित करने जा रहा है, और एक क्षण आएगा जब लहर को खो जाना पड़ेगा। लेकिन अभी, क्योंकि लहर सागर के विरुद्ध संघर्षरत थी, तो यह खो जाना मृत्यु जैसा प्रतीत होगा। यदि लहर तैयार थी, और लहर सजग थी, मैं सागर हूं और कुछ नहीं, तो बने रहने में क्या सार है? मैं सदा से थी और मैं सदा रहूंगी, क्योंकि सागर तो सदा वहां था और सदैव रहेगा। मैं लहर की भांति न रहूं-लहर वह रूप है जो मैंने इस समय लिया हुआ है; रूप मिट जाएगा, लेकिन मेरा तत्व नहीं मिटेगा। मैं इस लहर की भांति अस्तित्व में न रहूं मेरा अस्तित्व किसी दूसरी लहर के रूप में बना रह सकता है, या हो सकता है कि मेरा अस्तित्व लहर के रूप में रहे ही न। मैं सागर की उन अतल गहराइयों में समा सकती हूं जहां कोई लहर ही नहीं उठती है.. लेकिन अंतर्तम वास्तविकता बनी रहेगी, क्योंकि समग्र तुममें उतर आया है। तुम और कुछ नहीं बल्कि समग्र हो, समग्र की एक अभिव्यक्ति हो। एक बार सजगता स्थायी हो जाए, पतंजलि कहते हैं, जब व्यक्ति ने इस विभेद को देख लिया है कि मैं न यह हूं न वह, जब व्यक्ति सजग हो गया है, और चाहे जो कुछ भी हो उसके साथ उसने तादात्म्य नहीं किया है, तब उसकी आत्मभाव की, स्व की भावना मिट जाती है। तब अंतिम इच्छा भी खो जाती है, और यह अंतिम इच्छा तुम्हारी आधारभूत है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, 'तुम धन, संपदा, शक्ति, प्रतिष्ठा, सभी कुछ की चाहत छोड़ सकते हो यह कुछ भी नहीं है। तुम संसार की चाहत छोड़ सकते हो - यह कुछ भी नहीं है- क्योंकि ये सभी द्वितीयक इच्छाएं हैं। मूलभूत इच्छा है, होना। इसलिए वे लोग जो संसार छोड़ देते हैं मुक्ति की अभिलाषा करना आरंभ कर देते हैं, लेकिन यह मुक्ति भी उनकी मुक्ति है। मोक्ष में वे मुक्त अवस्था में रहेंगे। उनकी इच्छा है कि वहां पीड़ा को नहीं चाहिए। वे परम आनंद में होंगे लेकिन वे होंगे। जोर इस बात पर है कि उनको वहां होना चाहिए। इसी कारण से बुद्ध इस देश में जड़ें नहीं जमा सके, जो अपने आप को बहुत धार्मिक समझता है। इस पृथ्वी पर जन्मा सबसे धार्मिक व्यक्ति इस धार्मिक देश में जड़ें नहीं जमा सका। क्या हो गया? उन्होंने कहा, उन्होंने होने की मूलभूत इच्छा को छोडने पर जोर दिया। उन्होंने कहा : अन - अस्तित्व हो जाओ। उन्होंने कहा । होओ मत। उन्होंने कहा. मुक्ति की मांग मत करो, क्योंकि यह स्वतंत्रता तुम्हारे लिए नहीं है। यह स्वतंत्रता तुमसे मुक्ति होने जा रही है, तुम्हारे लिए नहीं वरन तुमसे स्वतंत्रता । · मुक्ति है तुमसे मुक्ति । विभेद को देख लो यह तुम्हारे लिए नहीं है; मुक्ति तुम्हारे लिए नहीं है। ऐसा नहीं है कि मुक्त होकर तुम रहोगे। मुक्त होकर तुम मिट जाओगे। बुद्ध ने कहा केवल बंधन का आस्तित्व है। यह बात में तुमको समझाता हूं। क्या तुम – कभी स्वास्थ्य के संपर्क में आए हो? अनेक बार तुम स्वस्थ रहे होओगे, किंतु क्या तुम कह सकते हो कि स्वास्थ्य क्या है? केवल बीमारी का अस्तित्व होता है। स्वास्थ्य का अस्तित्व नहीं
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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