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________________ रात्रि होने वाली थी, और वहां जंगली जानवर और डाकू थे, और कुछ भी बुरा हो सकता था। इस नाव हमें बचाया है। हमको सदैव और सदा के लिए इस नाव का, इस नाव के प्रति आभारी होना चाहिए। तब एक मूर्ख ने सुझाव दिया, हां, यह बात ठीक है अब हमको इस नाव को अपने सिरों पर लेकर चलना चाहिए क्योंकि इस नाव की तो पूजा की जानी चाहिए। तब उन्होंने अपने नगर की ओर जाते समय नाव को सिर पर रख कर चलना आरंभ कर दिया। अनेक लोगों ने पूछा, तुम लोग क्या कर रहे हो? हमने नाव में बैठे हुए लोगों को देखा है, लेकिन हमने कभी नाव को आदमियों के ऊपर सवारी करते हुए नहीं देखा। क्या हो गया है? उन्होंने कहा तुम नहीं जानते, इस नाव ने हमारी जिंदगियों को बचाया है। अब हम यह बात भूल नहीं सकते, और अपने पूरे जीवन भर हम इस नाव को अपने सिरों पर लाद कर घूमने वाले हैं। अ. इस नाव ने इनको पूरी तरह से मार डाला है। यही बेहतर रहा होता कि वे नदी के दूसरे किनारे पर ही छू । गए होते। यही बेहतर रहा होता कि इस नाव को सदा के लिए, सदैव ढोने के बजाय उनको जंगली जानवर ने मार डाला होता यह एक अंतहीन पीड़ा थी नदी के दूसरे किनारे पर पल भर में ही घटनाएं घट गई होतीं। मामला निबट गया होता। अब वर्षों तक वे लोग इस बोझ, इस भार, इस ऊब को ढोते रहेंगे। और जितना अधिक वे इसको लेकर फिरेंगे उतना ही वे इस बोझ के आदी हो जाएंगे। उस बोझ के बिना उनको अच्छा नहीं लगेगा, उनको असहजता लगेगी। और अब वे कुछ और कर भी नहीं पाएंगे, क्योंकि कुछ और किया भी कैसे जा सकता है? नाव को सिर पर उठाए हुए रहना इतनी सतत व्यस्तता हो जाएगी कि कुछ भी करने में वे करीब-करीब असमर्थ हो जाएंगे। यही तो अनेक धार्मिक लोगों के साथ हो गया है, वे कुछ भी कर सकने में असमर्थ हो चुके हैं, वे बस अपनी नाव को ढो रहे हैं। जाओ और जैनियों के आश्रमों, कैथेलिक मोनेस्ट्रियों, बौद्धों के आश्रमों में देखो ये लोग क्या कर रहे हैं? वे बस धर्म कर रहे हैं; सारा जीवन छूट चुका है। वे बस प्रार्थना कर रहे हैं या बस ध्यान कर रहे हैं। क्या कर रहे हैं वे? जीवन उनके द्वारा समृद्ध नहीं किया जा रहा है। सृजनात्मक नहीं हैं वे वे एक अभिशाप हैं, वरदान नहीं हैं वे उनके कारण जीवन और अधिक सुंदर नहीं हो जाता है। वे किसी भी भांति सहायता नहीं कर रहे हैं। लेकिन वे बहुत गंभीर लोग हैं, और वे लगातार उलझे हुए हैं, चौबीसों घंटे वे उलझे हुए हैं। वे अपने सिर पर एक नाव ढो रहे हैं। उनके कर्मकांड उनकी नाव हैं। स्मरण रखो, मेरे पास आओ, मुझ पर श्रद्धा करो। बस सीख लो कि श्रद्धा क्या है। मेरे उद्यान में आओ और वृक्षों के मध्य से प्रवाहित होती हुई हवा की आवाज सुनो, लेकिन बस घर लौट कर अपना एक उद्यान निर्मित करने के लिए इन पुष्पों के इन गीत गाते पक्षियों के निकट आओ, उनका एक गहरा अनुभव प्राप्त करों, फिर वापस लौट जाओ। तब अपना स्वयं का संसार निर्मित करो। बस मेरे झरोखे से एक झलक पा लो। मुझको अपने सम्मुख बिजली की एक कौंध की भांति – चमक जाने दो ताकि तुम जीवन का सभी कुछ देख लो लेकिन यह बस एक झलक ही होने जा रहा है। -
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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