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________________ प्रवचन 98 - श्रद्धा: किसी के प्रति नहीं होती प्रश्न- सार: 1- आपके प्रति श्रद्धा रखने और स्वयं में श्रद्धा रखने में क्या विरोधाभास है? 2- बुद्ध को क्या प्रेरित करता है? 3 – बच्चे पैदा करने का उचित समय कौन सा है ? 4- केवल सेक्स, प्रेम और रोमांस के बारे में सोचना क्या गलत है? पहला प्रश्न आपके प्रवचनों एक प्रवचन में कहीं गई एक बात ने मुझे गहराई तक आंदोलित कर दिया है। यह बात है, 'आपने आप में श्रद्धा करने और आपमें श्रद्धा रखने में विरोधाभास में भीतर एक भाग है जो कहता है: यदि मैं अपने स्वयं के स्व में श्रद्धा करता हूं और अपने स्वयं के स्व का अनुसरण करता हूं, तो मैंने आपके समक्ष समर्पण कर दिया है और आपको हां कह दिया है। लेकिन मैं यह निश्चित नहीं कर पा रहा हूं कि क्या यह सब बस कोई तर्क द्वारा समझने का प्रयास है जिसे मैंने अपने स्वयं के लिए निर्मित कर लिया है? मन बहुत चालाक है, और इस बात को सदैव स्मरण रखा जाना चाहिए। यही तो है जो मैं तुमसे कहता रहा हूं कि यदि तुम अपने आप पर भरोसा करो तो तुम मुझ पर श्रद्धा करोगे। या दूसरी ओर से कहा जाए, यदि तुम मुझ पर श्रद्धा करते हो तो स्वभावत: तुम स्वयं पर श्रद्धा करोगे। इस बात में कोई विरोधाभास नहीं है। मन के कारण विरोधाभास उठ खड़ा होता है। यदि तुम अपने आप में श्रद्धा करते हो तो तुम सभी पर श्रद्धा करते हो, क्योंकि तुम जीवन पर श्रद्धा करते हो। तुम उन पर भी श्रद्धा करते हो जो तुम्हारे साथ धोखा करेंगे, किंतु यह महत्वपूर्ण नहीं है। यह उनकी समस्या है; यह तुम्हारी समस्या नहीं है। वे तुमको धोखा देते हैं या वे तुमको धोखा नहीं देते, इसका तुम्हारी श्रद्धा से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यदि तुम कहते हो, मेरी श्रद्धा केवल इसी शर्त पर रहती है कि कोई मेरे साथ धोखा करने का प्रयास न करे, तब तुम्हारी श्रद्धा नहीं बनी रह सकती, क्योंकि धोखे की प्रत्येक संभावना तुम्हारे भीतर एक हिचकिचाहट को उत्पन्न करेगी- कौन जाने यह व्यक्ति मेरे साथ
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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