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________________ लेकिन तब यह मनोमय की सर्वाधिक गहरी परत में प्रविष्ट हो जाती है। यह तुम्हारे मनस शरीर में प्रविष्ट हो जाती है। यह एक्युपंक्यर से अधिक गहराई में जाती है। यह करीब-करीब ऐसा ही है जैसे कि तम परमाण के तल पर या परमाण से भी सक्ष्म स्तर पर पहुंच गए हो। तब यह तम्हारे शरीर को स्पर्श नहीं करती है, तब यह तुम्हारे प्राण शरीर को स्पर्श नहीं करती, यह तो बस भीतर प्रविष्ट हो जाती है। यह इतनी सूक्ष्म है और इतनी छोटी कि इसके रास्ते में कोई अवरोध नहीं आता। यह तो बस मनोमय कोष, मनस शरीर में प्रविष्ट हो जाती है और वहां से यह कार्य करना आरंभ कर देती है। अब तुमको प्राणमय कोष से भी बड़ा अधिष्ठाता मिल गया है। भारतीय चिकित्सा पद्धति द इन तीनों का संश्लेषण है। औषधियों में यह सर्वाधिक संश्लेषणात्मक सम्मोहन चिकित्सा और अधिक गहराई में जाती है। यह विज्ञानमय कोष, चौथे शरीर, चेतना के शरीर को स्पर्श करती है। यह औषधियों का प्रयोग नहीं करती है। यह किसी भी वस्तु का प्रयोग नहीं करती। यह तो केवल सुझावों का उपयोग करती है, बस इतना ही। यह तुम्हारे मन में बस सुझाव रख देती है-चाहे इसको जीवधारियों का चुंबकत्व कहो, या मेस्मैरिज्म, सम्मोहन या जो कुछ भी तुम इसे कहना चाहो-लेकिन यह विचार की शक्ति है, पदार्थ की शक्ति नहीं है। होम्योपैथी भी पदार्थ की अत्यधिक सक्ष्म मात्रा की शक्ति है। सम्मोहन चिकित्सा परी तरह से पदार्थ से छटकारा पा लेती है, क्योंकि भले ही कितना सुक्ष्म हो, यह है तो पदार्थ ही। दस हजार शक्ति है लेकिन फिर भी यह पदार्थ की ही शक्ति है। यह बस विचार ऊर्जा, विज्ञानमय कोष चेतना के शरीर पर छलांग लगा देती है। यदि तुम्हारी चेतना बस एक विशेष विचार को स्वीकार कर ले तो यह सक्रिय हो जाता है। सम्मोहन चिकित्सा, हिम्मोथेरेपी का भविष्य उज्जवल है। यह भविष्य की औषधि बनने जा रही है, क्योंकि बस तुम्हारे विचारों के प्रारूप को बदल देने से ही तुम्हारे मन को परिवर्तित किया जा सकता है, तुम्हारे मन के माध्यम से तुम्हारे प्राण शरीर और प्राण शरीर के माध्यम से तुम्हारे स्थूल शरीर को बदला जा सकता है। तब औषधि के रूप में विष की चिंता क्यों की जाए, स्थूल औषधियों की फिकर में क्या पड़ना? क्यों न इस कार्य को विचार शक्ति से कर लिया जाए? क्या तुमने कभी किसी सम्मोहन-विद को किसी माध्यम पर कार्य करते हुए देखा है? यदि तुमने नहीं देखा है, तो यह देखने लायक घटना है। यह तुमको एक विशेष अंतर्दृष्टि देगा। शायद तुमने सुना हो या शायद तुमने देखा भी हों-भारत में यह होता है; तुमने आग पर चलने वालों को अवश्य देखा होगा। यह और कुछ नहीं वरन हिप्नोथेरैपी है। यह विचार कि वे किसी विशिष्ट देवता या किसी विशिष्ट देवी से आविष्ट हो गए हैं और अब उनको कोई आग नहीं जला सकती, बस यह विचार ही पर्याप्त है। यह विचार उनके शरीरों के सामान्य क्रियाकलापों का नियंत्रण और रूपांतरण कर देता है। वे तैयारी किए हुए होते हैं. चौबीस घंटे पहले से वे उपवास करते हैं। जब तुम उपवास कर रहे हो तो तुम्हारा पूरा शरीर शुद्ध है और इसके भीतर मल नहीं रहा, तब तुम्हारे और स्थूल शरीर के मध्य का
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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