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________________ अगर तुम किसी जैन साधु के पास जाओ और तुम्हें जैनों ने न सिखाया हो कि कौन सो प्रश्न पूछना है, तुम समस्या खड़ी कर दोगे, तुम वहां घबड़ाहट फैला दोगे। क्योंकि तुम ऐसे प्रश्न पूछोगे जिनके लिए परंपरा में उनकी परंपरा ने-उत्तर तैयार नहीं कर रखे हैं। यदि तुम किसी जैन से पूछो, परमात्मा ने संसार ' मरो बनाया, तो वह हैरान रह जाएगा, क्योंकि उसके धर्म-सिद्धांत में कोई परमात्मा है ही नहीं, उसके धर्म-सिद्धांत में कभी भी कुछ बनाया नहीं गया है, यह संसार सदा, सदा और सदा से विद्यमान है। सृष्टि रचना कभी हुई ही नहीं। अत: अगर तुम पूछ लो कि परमात्मा ने संसार क्यों बनाया, तो एक जैन के लिए तुम्तारा प्रश्न बिलकुल बेतुका है, क्योंकि न कोई परमात्मा है और न कोई सृष्टि, यह संसार सदा से है। 'सृष्टि' शब्द ही जैन- भाषावली में नहीं हैं, क्योंकि सृष्टि का मतलब होता है : स्रष्टा का अस्तित्व, और जब कोई सृष्टि ही नहीं हुई तो कोई स्रष्टा कैसे हो सकता है? यह संसार है, लेकिन यह कोई सृष्टि नहीं है। यह शाश्वत है, असृजित है; यह सदा से मौजूद रहा है। कभी भी सैद्धांतिक प्रश्न मत पूछो, क्योंकि यह उधार लिया हुआ है। अस्तित्वगत प्रश्न खोज लो। पता लगाओ कि तुम्हारी कठिनाई क्या है। जान लो कि तुम्हारा जूता कहां काटता है। अपनी निजी समस्याओं को जानो। और हो सकता है कि तुम्हारी समस्या किसी दूसरे की समस्या न हो, इसलिए दूसरा इस बात पर राजी ही न हो कि यह एक समस्या है। समस्याएं व्यक्तिगत होती हैं वे कोई जागतिक घटना नहीं हैं। मेरी समस्या मेरी समस्या है, तुम्हारी समस्या तुम्हारी समस्या है। वे तुम्हारे अंगूठों की छाप की तरह ही अलग-अलग हैं, और उन्हें होना ही चाहिए। जब मैं देखता हूं लोग उधार की समस्याएं पूछ रहे हैं, उन पर तुम्हारे हस्ताक्षर नहीं हैं, और तब वे निरर्थक हो जाती हैं-पूछने योग्य भी नहीं हैं, तो उत्तर के योग्य भी नहीं होती हैं। तुम्हारी समस्याओं पर तुम्हारे हस्ताक्षर होने चाहिए। उन्हें तुम्हारे जीवन से, उसके संघर्ष, चुनौतियों, तुम्हारी प्रतिसंवेदनाओं, और उनका सामना करने की क्षमता से उठना चाहिए। मैंने सुना है, अंतत: विवाह के दलाल ने कोहेन को उस लड़की से मिलने के लिए राजी कर ही लिया। र, प्रतिभाशाली, शिक्षित और ढेरों रुपये-पैसे वाली बताया गया था। कोहेन उससे मिला, पसंद किया, और विवाह कर लिया। एक ही दिन बाद वह उस विवाह के दलाल के पास पहुंचा और क्रोधित होकर बोला, तुमने मेरे साथ गंदा मजाक किया है, ओह, उसने खुद ही माना है कि वह पूना के आधे पुरुषों के साथ सो चुकी है। तो क्या हुआ, आखिर पूना है ही कितना बड़ा, दलाल ने उत्तर दिया। तुम्हारी समस्या दलाल की समस्या नहीं है। तुम्हारी समस्या तुम्हारी है, किसी और की नहीं। याद रहे अगर यह व्यक्तिगत समस्या है तो ही सुलझाई जा सकती है क्योंकि यह सच्ची है। यदि तुमने इसे
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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