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________________ तभी समस्या उठ खड़ी होती है। तुम्हारे भीतर के द्वैत का प्रश्न ही समस्या है, तुम यह करना चाहते हो, और तुम वह भी करना चाहते हो, और समस्या उपजती है। लेकिन अगर तुम एक हो तो, कोई समस्या नहीं हैं। तुम सहजता से चलते हो। जब कभी भी तुम इस प्रकार का निरपेक्ष प्रश्न-समस्या क्या है या पीलापन क्या है या प्रेम क्या है पूछते हो, तो बात कठिन हो जाती है। संत अगस्तीन ने कहा है : मैं जानता हूं समय क्या है, लेकिन जब लोग मुझसे पूछते हैं, समय क्या है, मैं अचानक दिग्भ्रमित हो जाता हूं। हरेक व्यक्ति जानता है समय क्या है, लेकिन अगर कोई पूछता है, बिलकुल ठीक-ठीक बताओ यह क्या है, तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। तुम यह दिखा सकते हो कि समय क्या है, लेकिन अपने शुद्धतम रूप में, निरपेक्षत: समय है क्या? लेकिन मैं समझता हूं कि यह समस्या क्यों आ खड़ी हुई है। कुछ ऐसे लोग हैं जो इतने संशयग्रस्त हैं कि वे तय नहीं कर सकते कि समस्या क्या है। वे इतने संशयग्रस्त हैं, ऐसे चौराहे पर खड़े हैं कि समाधान क्या है यह तो बहुत दूर की बात है, अभी तो वे यह भी तय नहीं कर पाए हैं कि समस्या क्या है। बहुत हैं ऐसे लोग, क्योंकि तुमने अपनी भावनाओं से अपने. अस्तित्वगत हृदय से संपर्क खो दिया है। इसलिए समाधान ही नहीं, बल्कि समस्या भी दूसरे के द्वारा दी जाती है। तुम मुझसे पूछ रहे हो कि मैं तुम्हें बताऊं कि तुम्हारी समस्या क्या है। तुम मुझ पर न सिर्फ समाधान के लिए निर्भर हो, तुम मुझ पर समस्या के लिए भी निर्भर हो। लेकिन अतीत में यह इसी भांति होता चला आया है। जब लोग मेरे पास आते हैं तो मैं तुरंत ही यह देख सकता है कि उनके पास अपनी समस्या है या वे उधार मांग कर लाए हैं। अगर कोई ईसाई आता है तो वह ऐसी समस्या लेकर आता है जिसे कोई हिंदू कभी नहीं ला सकता। यदि कोई यहूदी आता है तो वह ऐसी समस्या लाता है जिसे कोई ईसाई कभी नहीं ला सकता। जब कोई जैन आता है तो वह बिलकुल ही अलग समस्या लेकर आता है जिसे कोई हिंदू कभी नहीं ला सकता। क्या होता है? ये समस्याएं जीवन की समस्याएं नहीं हो सकती हैं, क्योंकि जीवन की समस्याएं यहदी, हिंदु ईसाई या जैन नहीं हो सकती हैं, जीवन की समस्याएं केवल जीवन की समस्याएं ही हैं। ये समस्याएं सैद्धांतिक हैं, वे सिखाई गई हैं। उनको समस्याएं भी सिखाई जाती है-अब पूछने को क्या बचा? मानवता का बहुत चालाक लोग शोषण करते रहे हैं। पहले वे सिखाते हैं कि क्या पूछा जाए, और फिर उनके पास उत्तर भी होता है। यदि तुम सही प्रश्न पूछो तो वे सही उत्तर दे देते हैं। और दोनों ही झूठे हैं क्योंकि प्रश्न भी उन्हीं के द्वारा सिखाया गया है और फिर वही तुमने पूछा। और वे तुम्हें केवल वे ही प्रश्न सिखाते हैं जिनका उत्तर वे दे सकते हों। इस प्रकार खेल अच्छी तरह, बिलकुल बढ़िया ढंग से चलता रहता है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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