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________________ मैं तैयार होने के लिए जरा शयनकक्ष में जा रही हूं। जब मैं वहां से आपको बुलाऊं तो कृपया आप आ जाएं। यह तो कमाल ही हो गया। वह भी मेरे लिए उतनी ही उत्सुक है जितना कि मैं उसके लिए था, बॉस ने अपनी उपलब्धि पर प्रसन्न होते हुए सोचा। अब आप अंदर आ सकते हैं, अंततः युवती की पुकार आई, लेकिन सावधानी से आइएगा जिससे कि आप गिर न पड़े। यहां की सारी रोशनियां बुझी हई हैं। हमारे हीरो बॉस ने इसे एक इशारा समझा। जल्दी से अपने सारे वस्त्र उतार कर वह अंधेरे कमरे में प्रविष्ट हो गया, और अपने पीछे का दवार जिससे वह भीतर आया था, बंद कर दिया। जैसे ही उसने ऐसा किया कि कमरा रोशनी से जगमगा उठा और उसने देखा कि उसके कार्यालय का सारा स्टॉफ कमरे के मध्य में खड़ा है और गा रहा है : 'आपको जन्मदिन मुबारक हो...।' लोग केवल उसी बात को प्रकट करते हैं जिसे तुम अपने भीतर छिपाए हुए हो। यदि तुमको अनुभव होता है कि तुम पागलखाने में हो, तो निस्संदेह तुम पागल हो। पुरुषों के साथ और अधिक रहने का प्रयास करो, महिलाओं के साथ और अधिक रहने का प्रयास करो, लोगों के साथ और अधिक रहने का प्रयास करो। और अधिक संबंधों का प्रयास करो। यदि तुम मनुष्यों के साथ प्रसन्न नहीं रह सकते तो तुम्हारे लिए किसी वृक्ष या किसी नदी के साथ प्रसन्न रह पाना संभव नहीं है-असंभव है यह। यदि तुम एक मनुष्य को नहीं समझ सकते जो कि तुम्हारे इतना निकट है, तुमसे इतना मिलता-जुलता है, तो तुम यह आशा कैसे लगा सकते हो कि तुम किसी वृक्ष, किसी नदी, किसी पर्वत को समझने में समर्थ हो पाओगे जो इतने दूर हैं? एक पर्वत और तुम्हारे बीच में लाखों वर्ष की दूरी है। कभी लाखों जन्म पहले तम पर्वत रहे होंगे लेकिन अब तम वह भाषा परी तरह भल चके हो और पर्वत तम्हारी भाषा नहीं समझ सकता। पर्वत को अभी मनुष्य होना है, उसे दीर्घ काल के विकास की आवश्यकता है। तुम्हारे और पर्वत के मध्य एक विशाल खाई है। यदि तुम अपने आप को मनुष्यों से, जो इतने पास, इतने समीप हैं, नहीं जोड़ सके; तो तुम्हारे लिए अपने आप को किसी और से जोड़ पाना असंभव है। पहले अपने आपको मनुष्यों से जोडो। धीरे- धीरे तुम मनुष्यों को जितना अधिक समझ पाने में समर्थ हो जाओगे उतना ही अधिक तुम भीतरी संवाद, लय और सुसंगति के योग्य होते चले जाओगे। फिर तुम क्रमश: आगे बढ़ जाते हो। फिर पशुओं की ओर बढ़ो, यह दूसरा कदम है। फिर पक्षियों की ओर जाओ, फिर वृक्षों की ओर बढ़ो, फिर चट्टानों की ओर जाओ, और केवल तब तुम शुद्ध अस्तित्व की ओर जा सकते हो, क्योंकि स्रोत वही है। और हम उस स्रोत से इतने अधिक समय से दूर हैं कि हम पूरी तरह से भूल गए हैं कि कभी हम इससे संबंधित रहे थे या यह हमसे संबंधित था। तीसरा प्रश्न:
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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