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________________ एक सड़क पर दो मनोवैज्ञानिक मिल गए। एक ने कहा : 'हैलो । ' दूसरे ने कहा : 'मैं हैरान हूं कि इस बात से उसका क्या आशय है?' बस एक जरा सी बात कि कोई हैलो कर रहा है और समस्या उठ खड़ी होती है... 'मैं हैरान हूं कि इस बात से उसका क्या आशय है?' रोगी ने डाक्टर को बताया कि उसको अपनी आंखों के सामने धब्बे दिखाई पड़ते रहते हैं। डाक्टर ने उसे चितकबरी त्वचा वाली महिलाओं के साथ घूमना-फिरना बंद करने के लिए कहा। जब वह बाहर जाने लगा तो डाक्टर ने उसे जीभ बाहर निकाले हुए जाने को कहा। ऐसा किसलिए? रोगी ने पूछा। क्योंकि मैं अपनी बाहर बैठी हुई नर्स से घृणा करता हूं डाक्टर ने कहा। रोगी और डाक्टर दोनों एक ही नाव में सवार हैं। निःसंदेह जब तुम लोगों के बीच आते हो जब तुम अपने जैसे लोगों के बीच आते हो, तो तुम्हारे भीतर कुछ प्रतिसंवेदित होने लगता है। वे विक्षिप्त हैं, तुम भी विक्षिप्त हो जिस क्षण तुम उनके निकट आते हो ऊर्जा का एक सूक्ष्म संवाद घटित होने लगता है। तुम्हारी विक्षिप्तता उनकी विक्षिप्तता को बाहर ले आती है, उनकी विक्षिप्तता तुम्हारी विक्षिप्तता को बाहर लाती है। यदि तुम अकेले रहते हो, तब तुम प्रसन्न रहते हो। मुल्ला नसरुद्दीन मुझसे कह रहा था, मैं और मेरी पत्नी पच्चीस वर्षों तक बहुत प्रसन्नतापूर्वक जीए। मैंने पूछा, , फिर क्या हो गया? उसने कहा फिर हमारी मुलाकात हो गई, तब से जरा भी प्रसन्नता नहीं है। यहां तक कि दो प्रसन्न व्यक्ति मिलते हैं और तुरंत अप्रसन्नता शुरू हो जाती है। तुम अपने भीतर अप्रसन्नता के सूक्ष्म बीज लिए घूम रहे हो। ठीक मौका मिला और वे अंकुरित हो जाते हैं। और निसंदेह मनुष्य में उसकी सभी संभावनाओं को साकार करने के लिए मानवीय वातावरण की आवश्यकता होती है। तुम्हारे वातावरण का निर्माण वृक्षों से नहीं होता। तुम एक वृक्ष के पास पहुंच सकते हो और वहां चुप होकर बैठ सकते हो, या तुम कुछ भी चाहो कर सकते हो, किंतु तुम वृक्ष से असंबंधित रहोगे। तुम्हारे और वृक्ष के मध्य कोई संवाद, कोई भाषा नहीं होती। वृक्ष अपने स्वयं के अस्तित्व में जीए चला जाता है और तुम अपने स्वयं के अस्तित्व में जीए चले जाते हो। दोनों के मस्त कोई सेतु नहीं है। नदी एक नदी है, तुम्हारे और नदी के मध्य कोई सेतु नहीं है। जब तुम किसी मनुष्य के निकट आते हो अचानक तुम पाते हो कि सेतु बन गया है, और वह सेतु तुरंत ही इस ओर से उस ओर, उस ओर से इस ओर मनोभावनाओं का स्थानांतरण आरंभ कर देता है। लेकिन आधारभूत रूप से इसका कारण तुम ही हो, इसलिए समाज पर आरोपित मत करो, लोगों पर दोषारोपण मत करो। वे तो बस तुम्हें अनावृत करते हैं। और यदि तुम जरा भी समझपूर्ण हो तो तुम उन्हें तुम्हारे प्रति एक महान कार्य के लिए धन्यवाद दोगे। वे तुम्हें अनावृत करते हैं, वे दिखा देते हैं
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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