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________________ होने के लिए। बंद मुट्ठियों के साथ नहीं बल्कि खुले हाथों से। कुछ रोकते या छिपाते हुए नहीं, स्वयं को पूर्णत: खोलते हुए, जीवन के प्रति गहन श्रद्धा के साथ, चालाक और कुटिल होने की कोशिश न करते हुए। ऐसे में तुम जीवन के साथ प्रतिपल बहते रहते हो... क्योंकि जीवन बदलता रहता है, इसलिए तुम्हारा प्रतिसंवेदन भी बदलता रहेगा। कई बार गर्मी होती है और तुम धूप में नहीं बैठ सकते हो, तो तुम्हें छाया की जरूरत पड़ेगी। कभी बहुत सर्दी होती है और तुम छाया में नहीं बैठ सकते हो, तुम धूप में बैठना चाहोगे, लेकिन तब कोई भी तुमसे यह नहीं कहने जा रहा है कि तुम्हारा बर्ताव बहुत असंगत है, उस दिन तुम छांव में बैठे थे, और अब तुम धूप में बैठे हो? सुसंगत बनो। चुनाव करो! यदि तुम धूप में बैठना चाहते हो, संगत बनाते हुए धूप में बैठे रहो।' तुम इस बेतुकेपन पर हंसोगे, लेकिन लोग तुमसे जीवन में यही उम्मीद लगाते हैं। तुम्हारे चारों ओर सब कुछ बदल रहा है, स्थायी विचारों के चक्कर में मत पड़ो वरना तुम संशयग्रस्त हो जाओगे। और दूसरे जो कहते हैं, उसे मत सुनना, अपने हृदय की सुनो। मैंने सुना है, जिस बात से मनुष्य-जाति पीढ़ियों से भयभीत थी वह हो गई एक नाभिकीय प्रक्रिया अनियंत्रित हो गई और सारा भूमंडल विस्फोटित हो गया, जिससे वहां के सारे जीवधारी मारे गए। स्वभावत: परलोक के द्वार पर भयंकर उलझन खड़ी हो गई। एक ही समय में इतनी सारी आत्माएं त: सेंट पीटर ने कई नोटिस लगा दिए जिनके पीछे आत्माएं अपने वर्ग के अनुसार पंक्ति बद्ध होकर खड़ी रहें। एक जगह लिखा था. मालिकों कि लिए। दूसरी जगह. वे पुरुष जो अपनी पत्नियों के नियंत्रण में हैं। मालिकों के लिए' वाले स्थान में केवल एक आत्मा खड़ी थी, जब कि दूसरे सूचना-पट के पीछे इतनी लंबी लाइन थी कि वह आकाश-गंगा तक पहुंच रही थी। सेंट पीटर ने उस अकेली आत्मा से उत्सुकता वश कहा केवल तुम ही यहां हो, ऐसा कैसे हो गया? मुझे नहीं पता, पत्नी ने मुझे यहां खड़े होने को कहा, उत्तर मिला। कभी तो पत्नी कहती है, कभी पति कहता है, कभी पिता, तो कभी मां, और कभी गुरु। किसी ने यहां तुमसे खड़े होने को कहा है और तुम नहीं जानते, क्यों? सुनिश्चित करो कि तुम यहां क्यों खड़े हो? सुनो। यह थोड़ा जटिल है। यदि तुम किसी का अनुगमन भी करना चाहते हो तो अपने हृदय की सुनो, क्या तुम ऐसा ही चाहते हो। मैं ऐसा नहीं कहता कि किसी का अनुगमन मत करो, क्योंकि अगर
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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