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________________ प्रत्येक वस्तु संयुक्त है। यहां पर कुछ भी पृथक नहीं है। इसलिए जब मैं कहता हूं परस्पर निर्भरता, तो मेरा यह अभिप्राय नहीं है कि यह एक अवधारणा है, एक सिद्धांत है, नहीं। स्व निर्भरता एक अवधारणा है, क्योंकि यह आत्यंतिक रूप से झूठ है। कभी किसी ने कोई स्व निर्भर चीज नहीं देखी। परम निर्भरता भी झठ है, क्योंकि किसी ने कभी परम निर्भर चीज नहीं देखी है। एक बच्चे का जन्म होता है, तम सोचते हो कि वह पर्णत: असहाय और मां पर निर्भर है? क्या तमको दिखाई नहीं पड़ता कि मां को भी उससे बहुत कुछ मिल रहा है? वास्तव में जिस दिन बच्चे का जन्म होता है, तभी मां का भी एक मां के रूप में जन्म होता है। इसके पूर्व वह एक साधारण स्त्री थी। अब बच्चे के जन्म के साथ ही उसके साथ कुछ आत्यंतिक रूप से नया घटित हो गया है। उसने मातृत्व उपलब्ध कर लिया है। केवल ऐसा नहीं है कि बच्चा मां पर निर्भर है, मां भी बच्चे पर निर्भर है। जब कोई स्त्री मां बनती है तो तुमको उसमें घटित होती हुई एक विशेष प्रकार की आभा, उसमें घटित होती हुई एक विशेष प्रकार की लयबद्धता, दिखाई पड़ेगी। यदि मां की मृत्यु हो जाती है, तो निःसंदेह बच्चा जीवित नहीं रह सकेगा। किंतु यदि बच्चे की मृत्यु हो जाए, तो क्या तुम सोचते हो कि मां बचने में समर्थ हो पाएगी? नहीं, मां मर जाएगी। पुन: स्त्री शेष बच रहेगी, मातृत्व बच्चे के साथ खो जाएगा। और यह स्त्री उससे कुछ कमतर होगी जैसी वह बच्चे के जन्म से पूर्व थी। वह सदैव किसी बात से चूकती रहेगी, बच्चे के साथ उसके अस्तित्व का एक भाग खो गया है। वह खोया हुआ भाग लगातार एक घाव की भांति पीड़ा देता रहेगा। प्रत्येक चीज परस्पर निर्भर है। वृक्ष पृथ्वी से पोषित होता रहता है, वह तुम्हें फल दिए चला जाता है, तुम फल खाते रहते हो। फिर तुम्हारा देहावसान हो जाता है और पृथ्वी तुम्हें अवशोषित कर लेती है, और पुन: वृक्ष पृथ्वी से आहार लेता है। और फल? तुम्हारे बच्चों के बच्चे वृक्ष के माध्यम से तुमको खा रहे होंगे। प्रत्येक चीज एक चक्र में घूम रही है। जिस समय तुम एक सेब खा रहे हो तो कौन जानता है? तुम्हारे दादा, तुम्हारी दादी या तुम्हारे पर-परदादा उसी सेब में हों; भलीभांति चबा लो, अच्छी तरह पचा लो, वरना वयोवृद्ध परदादा को अच्छा नहीं लगेगा। उन्हें पुन: अपने अस्तित्व का हिस्सा बन जाने दो। वे सेब के माध्यम से तुमको खोज रहे हैं। वे पुन: वापस लौट आए हैं। प्रत्येक चीज परस्पर निर्भर है। इसलिए उत्तम नहीं है यह, यह कड़वा भी नहीं है; यह एक साधारण तथ्य है। तुम इसका मूल्यांकन नहीं कर सकते, क्योंकि उत्तम और कडुवापन हमारे मूल्यांकन हैं, व्याख्याएं हैं। और यह कोई अवधारणा नहीं है, यह एक वास्तविकता है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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