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________________ इसलिए पूर्वीय अवधारणा यह है कि स्त्री मां होने की खोज में है और पुरुष कहीं गहरे में अपनी खोई हई मां की खोज में है। उसने मां के गर्भ को, मां की उष्णता को, मां के प्रेम को खो दिया है। वह पुन: उस स्त्री को खोज रहा है जो उसकी मां बन सके। पुरुष आधारभूत रूप से एक बच्चा है। एक सत्तर वर्ष या नब्बे वर्ष की आयु का का पुरुष भी एक बच्चा है। और एक बहुत छोटी बच्ची भी मूलत: एक मां है। इसी भांति वर्तुल पूर्ण हो जाता है। पूरब में, उपनिषदों के दिनों में, ऋषिगण नव-दंपति को एक नितांत असंगत विचार के साथ आशीष दिया करते थे। पश्चिम की दृष्टि को अतयं दिखेगा यह। वे कहा करते थे, परमात्मा तुम्हें दस बच्चे प्रदान करे और अंत में तुम्हें अपने पति की मां बनने का चरम सौभाग्य भी प्राप्त हो। इस प्रकार कुल ग्यारह बच्चे; दस बच्चे पति के द्वारा और अंततः पति भी तुम्हारे लिए एक बच्चा बन जाएग्यारह संताने हों तुम्हारी। एक स्त्री तभी परितृप्त होती है जब उसका पति भी उसके लिए बच्चा बन जाता है। पुरुष अपनी मां की खोज करता रहता है। जब कोई पुरुष किसी स्त्री के प्रेम में पड़ता है तो वह पुन: अपनी मां के प्रेम में पड़ता है। किसी भी भांति यह स्त्री उसे उसकी मां का प्रतिभास देती है। उसके चलने का ढंग, उसका चेहरा, उसकी आंखों का रंग या उसके बालों का रंग, या उसकी आवाज, कुछ ऐसी बात जो उसको पुन: उसकी मां का खयाल दे देती है। उसके शरीर की उष्णता, उसकी कुशलता की चिंता, जो वह उसके बारे में प्रदर्शित करती है, यही उसकी खोई हुई मां की तलाश है। यह गर्भ की खोज है। मनोविश्लेषकों का कहना है कि स्त्री के शरीर में प्रवेश की पुरुष की जो अभिलाषा है वह और कुछ नहीं वरन पुन: गर्भ में पहुंच जाने की कामना है। यह अर्थपूर्ण है। पुरुष के द्वारा स्त्री की देह के भीतर प्रविष्ट हो जाने का कुल प्रयास और कुछ नहीं बल्कि गर्भ तक पहुंचने का प्रयास है। एक बार तुम समझ लो कि तुम्हारी ऊर्जा और तुम्हारे पुरुष साथी की ऊर्जा के मध्य क्या घटित हो रहा है, वास्तव में क्या चल रहा है, इसका निरीक्षण करो। धीरे- धीरे ऊर्जा एक वर्तुल में घूमना आरंभ कर देगी। और एक-दूसरे की सहायता करो। हम एक-दूसरे की सहायता करने के लिए ही, एक-दूसरे को प्रसन्न और आनंदित बनाने को, और अंत में स्त्री और पुरुष के सम्मिलन के माध्यम से परमात्मा को घटित होने का अवसर दिए जाने के लिए ही साथ-साथ हैं। प्रेम परिपूर्ण ही तभी होता है जब यह समाधि बन जाए। यदि अभी तक यह समाधि नहीं है और कलह और संघर्ष और छिद्रान्वेषण जारी रहता है, और लड़ाई-झगडा और क्रोध, और यह और वह, तब तुम्हारा प्रेम कभी लयबद्ध समग्रता नहीं बनेगा। तुम्हें परमात्मा कभी नहीं मिलेगा, उसको केवल प्रेम में ही पाया जा सकता है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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