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________________ पिता रुक गया, उसके चेहरे से क्रोध के भाव मिट गए। और यदि गर्भपात हो गया, उसने आक्षेप करते हए कहा, तो क्या आप उसको एक मौका और देंगे? अचानक परिस्थितियां बदल गईं। अब लोभ का बीज अंकुरित हो गया है। वह हत्या करने आया था, लेकिन बस धन का उल्लेख हुआ और वह हत्या के बारे में सब कुछ भूल गया; वह पूछ रहा है, क्या आप उसको एक मौका और देंगे? निरीक्षण करो......लगातार अपना निरीक्षण करते रहो, परिस्थितियां बदलती हैं और तुम तुरंत बदल जाते हो। तुम्हारे भीतर कुछ अंकुरित होने लगता है, कुछ बंद होने लगता है। मौलिक मन वाला व्यक्ति वही रहता है। जो कुछ भी घटता है वह इसका निरीक्षण करता है, लेकिन उसके भीतर अतीत से कोई इच्छा के बीज शेष नहीं बचे हैं। वह अपने अतीत के माध्यम से कत्य नहीं करता, वह बस प्रतिसंवेदना करता है, उसका प्रतिसंवेदन शून्यता से आता है। कभी-कभी तुम भी उसी प्रकार से कृत्य करते हो, लेकिन बहुत कम। और जब कभी तुम इस प्रकार से कृत्य करते हो, तुमको अत्यधिक पूर्णता और परितृप्ति और संतुष्टि अनुभव होती है। यह कभी-कभी घटित होता है। कोई मर रहा है, नदी में डूब रहा है और तुम बस बिना किसी विचार के नदी में छलांग लगा देते हो। तुम यह नहीं सोचते कि उस व्यक्ति को बचाना है या नहीं, वह हिंदू है या मुसलमान, या कोई पापी है या पुण्यात्मा, तुम्हें चिंता क्यों करनी चाहिए? नहीं, तुम जरा भी नहीं सोचते। अचानक यह घटित हो जाता है। अचानक तुम्हारा कृत्रिम मन पीछे धकेल दिया जाता है और तुम्हारा मौलिक मन कार्य करता है। और जब तुम उस व्यक्ति को बाहर निकाल लाते हो तो तुमको अत्यधिक परितृप्ति अनुभव होती है, जैसी कि तुम्हें पहले कभी नहीं हुई थी। तुम्हारे भीतर एक लयबद्धता उदित होती है। तुम बहुत संतुष्टि अनुभव करते हो। जब कभी तुम्हारी शून्यता से कुछ भी घटित होता है तुम आनंदित अनुभव करते हो। आनंद तुम्हारी शून्यता का कृत्य है। 'क्योंकि स्मृति और संस्कार समान रूप में ठहरते हैं, इसलिए कारण और प्रभाव का नियम जारी रहता है, भले ही वर्ण,स्थान और समय में उनमें अंतर हो।' और यह चलता चला जाता है.. .तुम्हारा जीवन बदलता है. तुम इस शरीर में मर जाते हो, तुम एक और गर्भ में प्रवेश करते हो, लेकिन अंतर्तम रूप तुम्हारे साथ संलग्न रहता है। तुमने जो कुछ भी किया है, चाहा है, अनुभव किया है, संचित किया है, वही फर का कोट तुम्हारे साथ चिपक जाता है, तुम इसे अपने साथ ले जाते हो। मृत्यु, सामान्य मृत्यु, केवल शरीर की मृत्यु होती है, मन नहीं मरता। वास्तविक मृत्यु, परम मृत्य, जिसको हम समाधि कहते हैं, न केवल शरीर की मृत्य है बल्कि यह मन
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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