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________________ नहीं हैं। और यहां कोई आपातकाल भी नहीं चल रहा है।' अपना चुनाव तुम्हें खुद ही करना है। लेकिन यह चुनाव सदा के लिए होगा, यह बात समझ लो, इसे याद रखना, अत: तुम्हें अपने लिए सावधानी पूर्वक चुनाव करना चाहिए। मैं तुम्हें सारी जगह दिखा दूंगा । इस प्रकार शैतान उसे नरक में सब जगह ले गया। एक समूह कीचड़ में लोट लगा रहा था और कीट-पतंगे उसे लगातार खाए जा रहे थे। एक और समूह लालु -लाल तपते हुए त्रिशूलों द्वारा भेदा जा रहा था। एक और समूह यातना - यंत्र पर खींचा जा रहा था। इसी प्रकार और भी थे और नवआगंतुक इन्हें देख कर काफी निराशा महसूस कर रहा था। फिर शैतान उसे एक ऐसे समूह में ले गया जहां सारे निवासी एक खास किस्म के बेहद बदबूदार मल से भरे गर्त में कमर तक डूबे खड़े थे और चाय पी रहे थे। यह कोई ज्यादा बुरा नहीं लगता, उसने सोचा, मैं यही समूह चुनूंगा, उसने शैतान से कहा । क्या तुम पक्के तौर से कह रहे हो, शैतान ने पूछा, याद रहे, तुम फिर अपना मन नहीं बदल सकोगे, और यह हमेशा-हमेशा और हमेशा के लिए है। नहीं, मेरा फैसला अटल है, मेरे लिए यही ठीक है, नये नरकजीवी ने कहा । बहुत अच्छा, शैतान ने कहा, इसमें चले जाओ। और जैसे ही वह अभागा जीव उसमें कूदा, एक सीटी बजी और आवाज सुनाई दी, बस बहुत हुआ, चलो सभी लोग सिर के बल खड़े हो जाओ, चाय का समय खत्म हो गया है। यदि तुम चुनाव करो तो तुम नरक चुनते हो। चुनाव नरक है। इसी प्रकार से तुमने चुनाव करके ही खुद के चारों ओर अपना नरक निर्मित कर लिया है। जब तुम चुनाव करते हो तो तुम परमात्मा को तुम्हारे लिए नहीं चुनने देते। - कृष्णमूर्ति चुनावरहितता पर जोर दिए चले जाते हैं। यह सारी कहानी का सिर्फ एक छोर है। दूसरा छोर यह है कि अगर तुम चुनावरहित हो तो परमात्मा तुम्हारे लिए चुनता है चुनावरहित रहो, यह कहानी का आधा भाग हैं- मात्र एक आरंभ जिस क्षण तुम चुनावरहित होते हो, जीवन प्रवाहित होता है। तुम वहां नहीं होते-जीवन प्रवाहित होगा और तुम नरक के सिवाय कुछ भी नहीं हो। जैसे ही तुम स्वयं एवं परमात्मा के बीच से हट जाते हो, वही चुनाव करता है। वह सदा से ही तुम्हारे लिए चुनता रहा है। एक कहावत है जिसमें कहा गया है, 'मनुष्य प्रस्तावित करता है परंतु ईश्वर इसे समाप्त कर देता है।' वास्तविकता इससे बिलकुल विपरीत है, ईश्वर प्रस्तावित करता है और मनुष्य इसे मिटाए चला जाता है जब तुम्हें अचुनाव के सौंदर्य और उसके साथ बहने की अनुभूति हो जाती
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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