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________________ गहन निद्रा से नहीं आ रही है, गहन निद्रा तो मौलिक मन के लिए मात्र एक रास्ता है। इसीलिए तो पतंजलि कहते हैं कि समाधि और गहन निद्रा (सुषुप्ति) एक समान हैं, उनमें मात्र एक अंतर है समाधि में तुम ठीक उसी मौलिक मन में चले जाते हो जिसमें तुम गहन निद्रा में जाते हो, किंतु तुम पूर्णतः जाग्रत होकर जाते हो, गहन निद्रा में तुम बेहोशी में वहां जाते हो, बिना यह जाने कि तुम कहां जा रहे हो, बिना यह जाने कि तुम किस रास्ते से जा रहे हो मौलिक मन से तुम्हारा यही संपर्क बचा हुआ है। चिकित्सक भलीभांति जानते हैं कि जब भी कोई रोग से पीड़ित होता है और यदि वह सो नहीं पा रहा है तो उसे रोग मुक्त करने का कोई उपाय नहीं है। निद्रा रोगनाशक है। वास्तव में रोगी के लिए पहली बात यही है : उसे गहरी निद्रा, गहन विश्राम में जाने में किस भांति सहायता की जाए। यह विश्राम रोगी को ठीक कर देता है, क्योंकि रोगी पुनः मौलिक मन से जुड़ जाता है, और मौलिक मन स्वास्थ्यदायी स्रोत है। यह तुम्हारी जीवन-ऊर्जा, प्रेम का स्रोत है जो कुछ भी तुम्हारे पास है वह तुम्हारे मौलिक मन के महासागर जैसे संसार से आ रहा है। निःसंदेह जब इसे अनेक पर्तों से होकर गुजरना पड़ता है तो यह प्रदूषित, विषाक्त हो जाता है तुम्हारा भीतरी पर्यावरण अब मौलिक नहीं रहा, यह भरा हुआ है, अनेक मुर्दा चीजों से भरा हुआ है। तुम्हारे मन और कुछ नहीं वरन तुम्हारे मुर्दा अनुभव हैं। कोई व्यक्ति जो मौलिक मन में सजग, बोधपूर्ण होकर जाना चाहता है उसको सीखना पड़ेगा कि अनसीखा कैसे हुआ जाए, अनुभव को अनसीखा कैसे करें, अतीत के प्रति कैसे लगातार मरते रहा जाए, अतीत से कैसे न चिपका जाए। एक क्षण तुम जी लिए हो यह क्षण मिट गया, इसके साथ मामला समाप्त करो। इसके साथ कोई सातत्य मत होने दो, इससे असंबद्ध हो जाओ। अब यह तुमसे संबद्ध नहीं रहा। यह समाप्त हो गया और सदा के लिए मिट गया। इस पर पूर्णविराम लगा दो, और तुम इसमें से इस भांति बाहर निकल आओ जैसे कि सांप अपनी पुरानी केंचुली से बाहर निकल आ है और पलट कर देखता भी नहीं। बस एक क्षण पूर्व यही केंचुली उसके शरीर का एक भाग थी, अब वह उसका भाग न रही। अतीत से सतत बाहर आते रही ताकि तुम वर्तमान में रह सकी । यदि तुम वर्तमान में रह सको तो तुम अपने मौलिक मन से बाहर नहीं जा सकते हो। मौलिक मन न अतीत जानता है और न भविष्य । जिसको तुम मन कहते हो वह कुछ और नहीं बल्कि अतीत और भविष्य है, अतीत और भविष्यअतीत और भविष्य के मध्य एक झूला - और तुम्हारा मन कभी अभी और यहीं नहीं रुकता। ध्यान का अभिप्राय यही है, अतीत से बाहर निकल आना, भविष्य को निर्मित न करना और उस सत्य के साथ बने रहना जो अभी और यहीं उपलब्ध है। इसके साथ रहो और अचानक तुम देखोगे कि तुम्हारे और वास्तविकता के बीच, तुम्हारे और उसके मध्य, जो है, कोई मन नहीं है, क्योंकि वर्तमान में मन रह
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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