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________________ 'और क्या यह खोजी की खोज को बहुत लंबा भी नहीं बना देगा?' यही लोभ है। भयभीत क्यों हो? परिणाम की इतनी चिंता में क्यों हो? मैं बार-बार सतत रूप से अभी और यहीं होने के लिए कह रहा हूं कल की मत सोचो। और तुम न केवल कल की सोच रहे हो बल्कि तुम भविष्य के जन्मों की भी चिंता ले रहे हो। और क्या यह खोजी की खोज को बहत लंबा, अत्यधिक लंबा नहीं बना देगा? इससे भयभीत क्यों हो? अनंतकाल उपलब्ध है। समय की कोई कमी नहीं है। तुम बहुत धीरे, अत्यधिक मंद गति से चल सकते हो; कोई जल्दी नहीं है। यह शीघ्रता लोभ के कारण है। इसलिए जब कभी लोग अधिक लोभी हो जाते हैं, वे बहुत जल्दबाजी में रहते हैं, और अधिक रफ्तार पाने के और-और उपाय खोजते रहते हैं। वे सतत दौडते रहते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि जीवन बीता जा रहा है। ये लोभी लोग कहते हैं, समय धन है। समय धन है? धन बहुत सीमित है, समय असीम है। समय धन नहीं है, समय शाश्वतता है। यह सदैव वहां है और वहां रहेगा और तुम सदा से यहां हो और सदैव यहां रहोगे। इसलिए लोभ को त्याग दो और परिणाम की चिंता मत लो। कभी-कभी यह घटित हो जाता है, अपने अधैर्य के कारण तुम अनेक चीजों से चूकते हो। यदि तुम मुझको लोभपूर्वक, लोभी मन से सुन रहे हो तो तुम मुझको नहीं सुन रहे होओगे। अपने' भीतर तुम लगातार बोल रहे होओगे, हां, यह अच्छा है; इसका मैं प्रयास करूंगा। यह मैं कर लूंगा। ऐसा लगता है कि इसके द्वारा, मुझको बहुत शीघ्र लक्ष्य मिल जाएगा। तुम मुझसे चूक गए हो कि मैं क्या कह रहा था, और जो मैं कह रहा था, उसी में लक्ष्य छिपा था। एक चिकित्सक यहां आया करते थे; अब उनका स्थानांतरण हो चुका है, वे लगातार नोट्स बनाया करते थे। मैंने उनसे पूछा, आप यह क्या करते रहते हैं? वे बोले, बाद में घर जाकर आराम से मैं उनको पड़ता हं। किंतु मैंने उनसे कहा, आप मुझको 'चूकते जा रहे हैं। आप एक बात सुनते हैं, आप उसको लिखते हैं, इसी समय में मैंने कुछ ऐसा कह दिया जिससे आप चूक गए। फिर आपने कुछ लिखा पुन: आप चूक गए। और जो कुछ भी आपने संकलित किया वे अंश हैं, और आप इनको एक साथ जोड़ नहीं पाएंगे। उनके मध्य के अंतराल को, आप अपने स्वयं के लोभ से, अपनी स्वयं की समझ से, अपने स्वयं के पूर्वाग्रहों से भर देंगे और वह पूरी बात विनष्ट हो जाएगी। लक्ष्य यहीं है। तुमको बस मौन, धैर्यवान, सजग होना पड़ता है। जीवन को परिपूर्णता में जीयो। लक्ष्य स्वयं जीवन में ही छिपा है। यह परमात्मा है जो तुम्हारे पास लाखों ढंगों से आता है। जब कोई स्त्री तुमको देख कर मुस्कुराती है तब याद रखो, यह परमात्मा है जो एक स्त्री के रूप में मुस्कुरा रहा है। जब कोई पुष्प अपनी पंखुड़ियां खोलता है, देखो, निरीक्षण करो-परमात्मा ने अपना हृदय एक पुष्प के रूप में खोल दिया है। जब कोई पक्षी गीत गाना आरंभ करे, उसको सुनो-परमात्मा तुम्हारे लिए गीत गाने के लिए
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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