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________________ मुसलमान देशों में समलैंगिकता प्रभावी रही है, इसलिए उनके स्वर्ग में इसकी भी व्यवस्था है। तुम्हारे पास न केवल सुंदर लडकियां होगी बल्कि तुम्हारे लिए सुंदर लड़के भी उपलब्ध रहेंगे। और इस संसार में अल्कोहल निंदित है, वहां मुसलमानों के स्वर्ग में शराब के चश्मे बहते हैं। शराब की नदियां! तुम्हें शराबखानों में जाने की जरूरत ही नहीं है, तुम तो बस उनमें तैर सकते हो, उनमें इबकी लगा सकते हो। और तुम इन लोगों को असासारिक कहते हो? वास्तव में वे और कोई नहीं?ल्कि सांसारिक लोग हैं जो इस संसार से इतने निराश हो गए हैं कि अब वे कल्पना में जीते हैं। उनके पासकल्पना का एक संसार है, वे इसको स्वर्ग, जन्नत या कुछ और कहते हैं। सभी इच्छाएं सांसारिक हैं, और जब मैं यह कहता हं तो मैं उनकी निंदा नहीं कर रहा हं मैं केवल एक तथ्य बोल रहा हूं इच्छा करना सांसारिक होना है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। परमात्मा ने यह समझने के लिए कि इच्छा क्या है, तुम्हें एक अवसर दिया है। इच्छा को समझने में, इसकी मात्र समझ से ही इच्छा तिरोहित हो जाती है। क्योंकि इच्छा भविष्य में है, इच्छा कहीं और है, और तुम अभी और यहीं हो। तुम अभी और यहीं होना चाहते हो और सत्य अभी और यहीं है, अस्तित्व अभी और यहीं घटित हो रहा है, सभी कुछ अभी और यहीं पर एकाकार हो रहा है, और अपनी इच्छा के साथ तम कहीं और हो, इसलिए तम चुकते चले जाते हो। तुम सदैव अतृप्त रहते हो क्योंकि वह जो तुमको तृप्त कर सकता है यहीं बरस रहा है और तुम कहीं और हो। अभी एकमात्र सत्य है और यहीं एकमात्र अस्तित्व है। इच्छा तुम्हें दूर ले जाती है। इच्छा को समझने का प्रयास करो, किस भांति यह तुम्हें धोखा देती रहती है, किस प्रकार यह तुम्हें और-और अभियानों पर ले जाती है, और तुम चूकते चले जाते हो। इसलिए जब कभी तुम्हें स्मरण आ जाए, वापस आ जाओ, घर लौट आओ। इच्छा से संघर्ष करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यदि तम इच्छा के साथ संघर्ष करोगे तो तुम एक और इच्छा निर्मित कर लोगे। केवल एक इच्छा ही दूसरी इच्छा के साथ संघर्ष कर सकती है। समझ इच्छा के साथ संघर्ष नहीं है। समझ के प्रकाश में इच्छा तिरोहित हो जाती है; जैसे कि जब तुम दीया जलाते हो तो अंधकार मिट जाता है। इसलिए इन्हें सांसारिक इच्छाएं मत कहो; निंदक मत बनो। समझने का प्रयास करो। यदि ऐसा है तो व्यक्ति को दूसरों पर निर्भर होना पड़ेगा, और उन सांसारिक वस्तुओं पर जिनको निश्चित रूप से आगे जाकर बंधन बन जाना है। लेकिन दूसरों पर निर्भर होने में गलत क्या है? अहंकार किसी पर निर्भर होना नहीं चाहता। अहंकार स्वतंत्र होना चाहता है। लेकिन तुम निर्भर हो। तुम अस्तित्व से भिन्न नहीं हो, तुम उसका भाग हो। प्रत्येक चीज आपस में जुड़ी है। हमारा अस्तित्व एक साथ है, एक सहजीविता में है। अस्तित्व एक सहजीवन है तो तुम स्वतंत्र कैसे हो सकते हो?. क्या तब तुम श्वास न लोगे? क्या तब तुम भोजन नहीं करोगे? यदि तुम भोजन करोगे तो तुमको वृक्षों पर,
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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