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________________ निंदा कितनी सरल है। यही कारण है कि निंदा करने वाले इतने सस्पष्ट होते हैं। लोगों ने जीवन पक्ष में बात नहीं की है, क्योंकि जीवन के बारे में कुछ भी विधायक कहना कठिन है-शब्दों के लिए यह बहुत कठिन है। निंदक अपनी बात कहने में बहुत कुशल रहे हैं वे निंदा करते रहे हैं और इनकार करते रहे हैं, किंतु उन्होंने तुम्हारे भीतर एक निश्चित मन निर्मित कर दिया है जो भीतर कार्यरत रहता है और तुम्हारे जीवन को विषाक्त करता रहता है। अब तुम मुझसे पूछते. हो : 'जीवन क्या है? काम-भोग में संलग्न होना? धन कमाना? सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करना, और यही सब कुछ?' और सांसारिक इच्छाओं में गलत क्या है? वास्तव मे सभी इच्छाएं सांसारिक हैं। क्या तुमने किसी ऐसी इच्छा को जाना है जो सांसारिक न हो? परमात्मा को तुम किसलिए चाहते हो? और तुम पाओगे कि तुम्हारी इच्छा में सारा संसार छिपा हुआ है। तुम स्वर्ग की इच्छा क्यों करते हो? और तुम पाओगे कि वहां सारा संसार छिपा हुआ है। वे जो जानते हैं कहते हैं कि इच्छा में ही संसार है। वे 'सांसारिक इच्छाएं नहीं कहते। बुद्ध ने कभी नहीं कहा था, सांसारिक इच्छा। वे कहते हैं, इच्छा ही संसार है, इच्छा जैसी वह है। समाधि के लिए इच्छा, संबोधि के लिए इच्छा भी सांसारिक है। इच्छा करना संसार में होना है, इच्छा न करना संसार से बाहर होना है। इसलिए सांसारिक इच्छा की निंदा मत करो; इसको समझने का प्रयास करो, क्योंकि सभी इच्छाएँ सांसारिक हैं। यही है भय कि यदि तुम सांसारिक इच्छाओं की निंदा करते हो तो तुम अपने लिए नई इच्छाएं निर्मित करना आरंभ कर देते हो, जिनको तुम अ-सांसारिक या दूसरे संसार की कहते हो। तुम कहोगे मैं कोई साधारण मनुष्य नहीं हूं। मैं धन के पीछे नहीं हूं। यह आखिर है क्या? तुम मरते हों-तुम धन को अपने साथ नहीं ले जा सकते। मैं किसी शाश्वत संपदा की खोज, अन्वेषण क हं। इसलिए तम अ-सांसारिक हो, या अधिक सांसारिक हो? वे लोग जो इस संसार की संपत्ति से संतुष्ट हो जाते हैं-जो क्षणिक है, और मृत्यु इसको छीन लेगी–वे सांसारिक हैं। और तुम किसी ऐसी संपदा की खोज कर रहे हो जो स्थायी है, जो सदा और सदा के लिए है, और तम असांसारिक हो? तम अधिक चालाक और चतुर प्रतीत होते हो। लोग सामान्य मानवों से काम संबंध बना रहे हैं-वे सांसारिक हैं। और तुम क्या चाह रहे हो? और कुरान में देखो, बाइबिल में देखो, हिंदुओं के धर्मशास्त्रों में देखो. स्वर्ग में तुम किसकी इच्छा कर रहे हो? सुंदर अप्सराएं स्वर्ण से बनी हुईं, उनकी आयु कभी नहीं बढ़ती है, वे सदा युवा रहती हैं। वे सदा सोलह वर्ष की रहती है-न कभी पंद्रह, न कभी सत्रह-कितने आश्चर्य की बात है। जब शास्त्र लिखे गए थे, तब भी उनकी आयु सोलह वर्ष थी। अब शास्त्र बहुत प्राचीन हो चुके हैं, लेकिन ये अप्सराएं अभी भी सोलह वर्ष की आयु पर रुकी हुई हैं। तुम क्या चाह रहे हो?
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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