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________________ बस चार आने के लिए इसे गधे से क्यों अलग करूं? फिर मैं नहीं बेच रहा हूं। जौहरी ने मन में कहा, यह भिखारी बेचेगा अवश्य, इसलिए वह थोड़ी दूर चला गया। वह उसे राजी करने के लिए आता, किंतु इसी बीच एक अन्य जौहरी ने इसे देख लिया। वह एक हजार रुपये देने को राजी था, इसलिए निर्धन व्यक्ति ने तुरंत बेच दिया, क्योंकि पिछला वाला तो आठ आने तक देने को राजी नहीं था। और यह दूसरा जौहरी तो करीब-करीब पागल मालूम पड़ा; उसने एक हजार रुपये का प्रस्ताव रख दिया। पहला जौहरी वापस आया, लेकिन हीरा तो जा चुका था। उसने उस निर्धन व्यक्ति से कहा : तुम मूर्ख हो! तुमने उसे केवल एक हजार रुपये की खातिर बेच डाला, यह लगभग दस लाख रुपये कीमत का था! वह भिखारी हंसने लगा, मैं मूर्ख हो सकता हूं मैं मूर्ख हूं लेकिन अपने बारे में क्या खयाल है आपका? मैं नहीं जानता था कि यह हीरा था, लेकिन आप तो जानते थे, और आपने उसे आठ आने तक में नहीं खरीदा। तुम्हें हीरा मिल सकता है; यह तुमसे छीन लिया जाएगा। तुम इसको लंबे समय तक रख न सकोगे। जब तक कि तुम स्वयं न समझ लो कि यह कितना मूल्यवान है, इसे चुरा लिया जाएगा। इसलिए तुमको विकसित होना पड़ेगा। सदगुरु का कार्य बहुत विरोधाभासी है। विरोधाभास यह है कि वह तुम्हें उकसाता है, वह तुम्हें निमंत्रित करता है, और खजाने को छिपाए चला जाता है। उसे साथ ही साथ दोनों कार्य करने पड़ते हैं; उसे तुमको प्रलोभित करना है, राजी करना है, और फिर भी वह तुम्हें आसानी से उस तक पहुंचने भी न देगा। इन दो विरोधाभासी प्रयासों के मध्य : उकसाना, सतत उकसाते रहना..... मैं प्रतिदिन बोले चला जाता हं : यह और कछ नहीं, प्रलोभन है, निमंत्रण है। किंत मैं इसे अंत तक छिपाऊंगा जब तक तुम इसको चुरा पाने में समर्थ नहीं हो जाते। मैं इसे देने नहीं जा रहा हूं इसको दिया नहीं जा सकता। इसे तुम केवल चुरा सकते हो। लेकिन तुम धीरे- धीरे उस्ताद चोर बन जाओगे। प्रलोभन तुम्हें उस्ताद चोर बना देगा। तुम करोगे क्या? मैं तुमको प्रलोभित करूंगा, और तुम्हें दिया कुछ भी नहीं जाएगा। तुम क्या करोगे? तुम यह सोचना आरंभ कर दोगे कि इसको कैसे चुराया जाए। ठीक समय से पहले कुछ भी घटित नहीं होता, कम से कम सत्य तो अपने उचित समय के पूर्व कभी नहीं घटता। और यदि मैं इसको तुम्हें देने का प्रयास करूं, तो पहली बात यह कि तुम तक कभी न पहुंचेगा। यदि यह पहुंच भी जाता है तो तुम दुबारा इसको खो दोगे। और... यदि मैं इसको तुम्हें दे दूं तो मेरी ओर से यह कोई करुणा का कृत्य न होगा। मेरी करुणा को कठोर होना पड़ेगा। मेरी करुणा को इतना कठोर होना पड़ेगा कि तुम इसके लिए चीख-पुकार मचाते रहते हो, और मैं इसको छिपाता रहता हूं। एक ओर मैं तुम्हें प्रलोभित करता हूं दूसरी ओर मैं इसे छिपाता हूं। एक बार प्रलोभित हो जाओ, तुम धीरे- धीरे और- और दीवानगी से भर उठोगे। तुम उपाय खोजोगे, तुमको उपाय खोजने पड़ेंगे। क्योंकि केवल खोज, अंवेषण, रास्तों की तलाश, अविष्कार, नये रास्तों की खोज, नये रास्तों के
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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