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________________ इसलिए न केवल तुमको चुराना पड़ता है, बल्कि सदगुरु को इस ढंग से कार्य करना पड़ता है कि तुम केवल तब ही चुरा पाने में समर्थ हो जब तुम तैयार हो चुके हो। उसे अनेक बाधाएं निर्मित करनी पड़ती हैं। वह खजाने को छिपाता चला जाता है। वह तुमको तभी अनुमति देगा जब तुम तैयार हो। बस तुम्हारा लोभ या तुम्हारी अभिलाषा पर्याप्त नहीं है, बल्कि तुम्हारी तैयारी, तम्हारी तत्परता चाहिए, तुम्हें इसको अर्जित करना पड़ेगा। और यह चोरी करने जैसा है, क्योंकि प्रयास अंधकार में करना पडेगा, और प्रयास बहुत शांतिपूर्ण ढंग से करना होगा। और वहां रास्ते पर हजारों बाधाएं हैं, दूर भाग जाने के लिए प्रलोभन हैं भटक जाने के लिए आकर्षण हैं। सदगुरु की सहायता तो वास्तव में तुम्हें और निपुण बनाने के लिए है, तुम्हें यह दक्षता देने के लिए है कि कैसे पता लगे कि खजाना यहां है या नहीं। सदगुरु के साथ रहते हुए, उसकी आबोहवा से घिरे हुए, धीरे-धीरे तुममें एक विशेष सजगता का उदय होने लगता है। तुम्हारी आंखें स्वच्छ हो जाती हैं और तुम देख सकते हो कि खजाना कहां है। और तब तुम इसके लिए कठोर परिश्रम करते हो। सदगुरु तुम्हें सुदूर हिमालय के-हिमाच्छादित, धूप में चमकते हुए शिखरों की झलक दे देता है, किंतु यह दूर है और तुम्हें यात्रा करनी पडेगी। यह कठिन होने जा रही है, यह श्रमसाध्य होने जा रही है। इस बात की परी संभावना है कि तम खो सकते हो। इस बात की पूरी संभावना है कि तुम लक्ष्य से चूक जाओ, तुम भटक सकते हो। जितना अधिक तुम शिखर के नजदीक आते हो, चुकने की संभावना और और अधिक, विराट से विराटतर होती जाती हैक्योंकि जितना तुम शिखर के निकट आते हो उतना ही तुम उसको कम देख पाते हो। तुमको केवल अपनी सजगता से चलना पड़ता है। दूर से तुम शिखर को देख सकते थे, दिशा चूकना कठिन था। लेकिन जब तुम पर्वतों में पहुंच गए हो और तुम ऊपर जा रहे हो तो तुम शिखर को नहीं देख सकते हो। तुमको तो बस अंधकार में टटोलना है, इसलिए यह चोरी करने जैसा ही अधिक है। सदगुरु तुमको इसे सरलता से नहीं देने जा रहा है। इसकी बहुत सरलता से अनुमति दी जा सकती है-द्वार को ठीक अभी खोला जा सकता है किंतु तुम वहां किसी खजाने को अभी देख पाने समर्थ नहीं हो, क्योंकि अभी तक तुम्हारी आंखें प्रशिक्षित नहीं हुई हैं। और यदि मात्र श्रद्धावश तुम यह विश्वास कर लो कि यह बहुत बेशकीमती है, तो बार-बार तुम्हारी श्रद्धा खो जाएगी। जब तक कि तुम अनुभव न करो और न जानो कि यह मूल्यवान है, यह अधिक समय तक रखा नहीं रह पाएगा, तुम इसको कहीं भी फेंक दोगे। मैंने एक निर्धन व्यक्ति, एक भिखारी के बारे में सुना था, जो सड़क पर अपने गधे के साथ आ रहा था। गधे की गर्दन में एक सुंदर हीरा लटक रहा था, भिखारी ने इसे कहीं पाया था और सोचा कि यह संदर दीखता है, तो उसने अपने गधे के लिए एक छोटा सा गहना, एक कंठहार बना दिया था। एक जौहरी ने उसे देखा। वह उस निर्धन व्यक्ति के पास गया और पूछा, इस पत्थर के लिए तुम क्या कीमत लोगे? निर्धन व्यक्ति बोला. आठ आने लूंगा। वह जौहरी ललचा गया। उसने कहा : आठ आने ?-इस जरा से पत्थर के लिए? मैं तुमको चार आने दे सकता हूं। लेकिन उस निर्धन व्यक्ति ने कहा.
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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