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________________ होती कामुकता संवेदना बन जाती है। वे लोग जो अपनी कामवासना का दमन करते हैं संवेदनाशन्य, जड़ हो जाते हैं। उनके पास जीवन नहीं होता। वे काष्ठवत निर्जीव हो जाते हैं। 'आकस्मिक कारक प्राकृतिक प्रवृत्तियों को सक्रिय होने के लिए प्रेरित नहीं करना, यह तो बस अवरोधों को हटा देता है। योग का सारा प्रयास ही अवरोधों को हटा देने का है; निषेध है इसका ढंग। वास्तव में कुछ नहीं किया जाना है क्योंकि सब कुछ है तुम्हारे पास; बस यह प्रवाहित नहीं हो रहा है। राह में कुछ चट्टानें रख दी गई हैं। तमको राह से भटका दिया गया है। ऐसे ही है यह, जैसे खेत सींचता हआ किसान। क्या तुमने कभी किसान को खेत सींचते हुए देखा है? पानी एक नाली में बह रहा होता है, वह जरा सी मिट्टी हटा देता है और पानी दूसरे रास्ते पर जाने लगता है। जब उस भाग की सिंचाई हो जाती है तो वह निकास पर थोड़ी सी मिट्टी वापस रख देता है, पानी उस रास्ते पर बहना बंद कर देता है। फिर वह नाली को कहीं और से खोल देता है, पानी वहां से बहना आरंभ कर देता है। पानी वहां है, उसे प्रवाहित होने के लिए पथ की आवश्यकता है। ऊर्जा तुम्हारे पास है, तुम ऊर्जावान हो, इसे केवल प्रवाहित होने के मार्ग की आवश्यकता है ताकि यह सहस्रार, उच्चतम शिखर, तुम्हारे अस्तित्व की पराकाष्ठा, तक पहुंच जाए। 'कृत्रिमता से निर्मित मन केवल अस्मिता से ही अग्रसर होते हैं।' और हम सभी के पास कृत्रिम मन हैं। इसी को मैं सम्मोहन कहता हं जो समाज ने तुम पर किया हुआ है। यहां आश्रम में हमारे यहां एक मनोचिकित्सा समूह है, और मैं इसके विषय में सोचता रहा है। इसे सम्मोहन चिकित्सा, हिम्मोथेरेपी कहा जाता है। लेकिन मैं इसे वि-मोहन चिकित्सा, डी-हिम्मोथेरैपी कहना पसंद करूंगा-क्योंकि आधारभूत प्रयास तुम्हें वि-मोहित करने का या अ-सम्मोहित करने का, तुमको प्रतिबंधों से मुक्त करने का है। सभी मन कृत्रिमता से निर्मित मन हैं. 'निर्माणचित्तान्यस्मितामात्रात्।' 'कृत्रिमता से निर्मित मन केवल अस्मिता से ही अग्रसर होते हैं। मैं हिंदू हूं मैं मुसलमान हूं मैं अश्वेत हूं मैं गोरा हूं मैं यह हूं वह हूंवे सभी कृत्रिम मन हैं। मौलिक चेहरा, मौलिक मन, जिसे मनुष्य ने निर्मित नहीं किया है, उसका ही साक्षात करना है, और उसे ही जानना है। मैने सुना है, एक छोटे अश्वेत बच्चे ने दुर्घटनावश सफेद रंग का डिब्बा अपने ऊपर उड़ेल लिया। जब वह घर लौटा तो उसके पिता ने उसकी जम कर पिटाई की और उसे सीधे बिस्तर में जाने के लिए कहा। कमरे से सुबकते हुए बाहर जाते समय उसने कहा, 'मैं केवल बीस मिनट के लिए ही श्वेत हुआ हूं और मैं तुम अश्वेतों से अभी से नफरत करने लगा हूं!'
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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