SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की बात है। यह तो चल भी न सकेगी, यह तो बस अधिक से अधिक लंगड़ा कर चल सकती है। यह कविता जैसी होगी भी नहीं । यदि तुम उस समय चित्र बनाओ, जब तुम अल्प ऊर्जावान हो तो तुम्हारा चित्र रुग्ण होगा। वह स्वस्थ नहीं होगा। यह स्वस्थ हो नहीं सकता, क्योंकि इस चित्र को तुमने बनाया है और तुम ऊर्जा में अल्पता अनुभव कर रहे हो। वास्तव में इस चित्र के रूप में तुम ही कैनवास पर चित्रित हो। यह उदास, दुखी, मरणासन्न होगा। मैंने एक बड़े चित्रकार के बारे में सुना है। उसने अपने एक मित्र को, जो एक चिकित्सक था उसे आकर अपनी एक कलाकृति देखने का अनुरोध किया था। उस चिकित्सक ने चित्र का अवलोकन किया, इस ओर से देखा और उस ओर से देखा। वह मित्र वह चित्रकार बहुत प्रसन्न हो गया कि वह कितने गौर से देख कर उसके चित्र का मूल्यांकन कर रहा है और अंत में उस चित्रकार ने पूछ ही लिया, क्योंकि उसने देखा कि उसका चिकित्सक मित्र उलझन में पड़ा है न सिर्फ उलझन में है बल्कि चिंतित है। उस चित्रकार मित्र ने पूछा, बात क्या है? इस चित्र के बारे में तुम क्या सोचते हो? उस चिकित्सक ने कहा परिशेषिका शोथ (अपेंडिसाइटिस) । उस चित्रकार ने किसी व्यक्ति का चित्र बनाया था और चिकित्सक बहुत ध्यान से इस चित्र को हर ओर से देख रहा था, क्योंकि चेहरा इतना पीला था और सारा शरीर इतनी पीड़ा में दिख रहा था कि उसे लगा इसे अवश्य ही अपेंडिसाइटिस का रोग होना चाहिए। बाद में यह पता लगा कि चित्रकार को अपेंडिसाइटिस थी, वह इससे पीड़ित था। तुम अपने आप को ही अपने काव्य में, अपनी चित्रकारी में, अपनी मूर्तिकला में विस्तीर्ण करते हो। जो कुछ भी तुम करते हो यह तुम ही हो, इसे ऐसा ही होना चाहिए। वृक्षों में पुष्प केवल तभी लगते हैं जब वे ऊर्जा के अतिरेक में होते हैं, जब अत्यधिक होती है ऊर्जा। वे फूल खिलाने में समर्थ हो पाते हैं जब किसी वृक्ष के पास अधिक ऊर्जा नहीं होती है तो उसमें फूल नहीं लगते, क्योंकि उसके पास तो पत्तियों तक के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं है। उसके पास तो जड़ों तक के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं है- यह फूल खिलाने की व्यवस्था वाँसे कर सकता है? फूल तो करीबकरीब एक विलासिता होंगे। जब तुम भूखे होते हो तो तुम घर के लिए चित्रों को खरीदने के बारे में नहीं सोचते। जब तुम्हारे पास वस्त्र नहीं होते हैं तो तुम वस्त्रों के बारे में सोचते हो, तुम एक सुंदर उपवन के बारे में नहीं सोचते ये विलासिताएं हैं जब ऊर्जा अतिरेक में होती है केवल तभी उत्सव होता है, रूपांतरण घटता है। जब तुम ऊर्जा से ओतप्रोत हो रहे हो तभी तुम गीत गाना चाहते हो, तुम नृत्य करना चाहते हो, तुम बांटना चाहते हो। 'एक वर्ग, प्रजाति, या वर्ण से अन्य में रूपांतरण, प्राकृतिक प्रवृत्तियों या क्षमताओं के अतिरेक से होता है।' सामान्यतः मनुष्य जैसा वह है, इतना अवरुद्ध है, और इतनी अधिक समस्याएं दमित हैं कि ऊर्जा कभी उस बिंदु तक नहीं आ पाती जिससे यह उद्वेलित हो सके और इसे बस दूसरों के साथ बांटा जा
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy