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________________ कर लेते हैं। एक भाग बहुत विराट हो जाएगा और दूसरे भाग पीछे रह जाएंगे, और वह कुरूप हो जाएगा। समाधि समग्र का विकास है। और विकास को स्वाभाविक, सहज होना चाहिए, जबरदस्ती नहीं। विकास को सजगता के माध्यम से होना चाहिए न कि रसायन शास्त्र के माध्यम से, न कि भौतिक वितान के माध्यम से, न कि ध्वनि के माध्यम से। विकास को सजगता के, साक्षित्व के माध्यम से घटित होना चाहिए, यही है समाधि। समाधि तुम्हें उसी बिंदु पर ले आएगी जिस पर तुम्हारा जन्म हुआ था। तत्क्षण यह तुम पर तुम्हारी सत्ता को, जो तुम हो उसको, तुम पर प्रकट कर देगी। अब समाधि के बारे में कुछ बातें समझ लेनी पड़ेगी। पहली : वह उपलब्धि हेतु कोई लक्ष्य नहीं है, वह पूर्ति हेतु कोई आकांक्षा भी नहीं है। यह कोई अपेक्षा नहीं है, यह कोई आशा नहीं है, यह किसी भविष्य में नहीं है, यह अभी और यहीं है। इसीलिए समाधि के लिए एकमात्र शर्त है इच्छा विहीन होना-समाधि की भी इच्छा न होना। यदि तुम समाधि की इच्छा कर रहे हो तो तुम स्वयं समाधि को लगातार नष्ट करते जा रहे हो। इच्छा की प्रकृति को समझना पड़ेगा, और इसी समझ में यह अपने आपसे ही स्वत: गिर जाती है। इसीलिए मैं कहता हूं कि जब तुम्हारी आशाएं विफल हो जाती हैं तो तुम एक सुंदर परिस्थिति में हो, इसका उपयोग करो। यही वह पल है जब तुम समाधि में अधिक सरलता से प्रविष्ट हो सकते हो। धन्य हैं वे जो निराश हैं; इस वाक्य को जीसस की अन्य सुंदर उक्तियों में शामिल हो जाने दो। वे कहते हैं, धन्य हैं वे जो विनम्र हैं, क्योंकि पृथ्वी के उत्तराधिकारी वे ही होंगे। मैं तुमसे कहता हूं धन्य हैं जो निराश हैं, क्योंकि समग्र के उत्तराधिकारी वे ही होंगे। इसे देखने का प्रयास करो कि आशा तुम्हें कैसे नष्ट कर रही है। आशा के साथ ही भय उत्पन्न होता है। भय उसी सिक्के का दूसरा पहलू है। जब कभी तुम आशा करते हो, साथ ही तुम भयभीत भी हो जाते हो। तुम भयभीत हो जाते हो कि तुम अपनी आशा को पूरा कर भी पाओगे या नहीं। आशा कभी अकेली नहीं आती, इसकी संगत भय के साथ है। फिर भय और आशा के बीच तुम्हारा विस्तार हो जाता है। आशा भविष्य में है और भय भी भविष्य में है; और तुम आशा और भय के मध्य झूलना आरंभ कर देते हो। कभी तुमको लगता है, ही, यह आशा पूरी होने वाली है, और कभी-कभी तुम्हें लगता है, नहीं, यह तो असंभव बात लगती है। और भय उठ खड़ा होता है। भय और आशा के मध्य तुम अपना अस्तित्व खो देते हो। मैं तुम्हें एक प्रसिद्ध भारतीय कथा सुनाता हूं : एक मुर्ख को आटा और नमक खरीदने भेजा गया। वह अपनी खरीद का सामान रखने के लिए एक बर्तन लेकर गया। उसे बताया गया था कि दोनों चीजों को मिलाना मत बल्कि उनको अलग-अलग
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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