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________________ है उससे कहीं अधिक वे निराशा पैदा कर देती हैं। तुम्हारे जीने का पूरा ढंग तुम्हें -नरक के और और अधिक निकट और निकट, पास और पास लिए जा रहा है। स्वर्ग तो मात्र एक इच्छा है, नरक लगभग एक वास्तविकता है। तुम नरक में रहते हो और तुम स्वर्ग के सपने देखा करते हो। वास्तव में स्वर्ग एक प्रकार की शामक औषधि है; यह तुम्हें आशा देता है लेकिन सभी आशाएं निराशा बन जाने वाली हैं। स्वर्ग की आशा तो बस निराशा का नरक निर्मित कर देती है। इसे याद रखो, केवल तभी तुम पतंजलि के अंतिम अध्याय 'कैवल्यपाद' को समझ पाओगे। मुक्ति की कला क्या है? मुक्ति की कला और कुछ नहीं बल्कि सम्मोहन से बाहर आने की कला है; मन की इस सम्मोहित अवस्था का परित्याग कैसे किया जाए; संस्कारों से मुक्त कैसे हुआ जाए; वास्तविकता की ओर बिना किसी ऐसी धारणा के जो वास्तविकता और तुम्हारे मध्य अवरोध बन सकती है, कैसे देखा जाए; आंखों में कोई इच्छा लिए बिना कैसे बस देखा जाए, किसी प्रेरणा के बिना कैसे बस हआ जाए। यही तो है जिसके बारे में योग है। तभी अचानक जो तुम्हारे भीतर है और जो तुम्हारे भीतर सदैव आरंभ से ही विद्यमान है, प्रकट हो जाता है। पहला सूत्र: जन्मौषधिमन्त्रतप समाधिजा सिद्धय। 'सिदधियां जन्म के समय प्रकट होती हैं,...' यह बहुत ही अर्थगर्भित सूत्र है, और मुझे अभी तक इस सूत्र की सही व्याख्या नहीं दिखाई पड़ी है। यह इतना सारगर्भित है कि जब तक तुम इसके अंतर्तम में न प्रविष्ट हो जाओ, तुम इसे समझ पाने में समर्थ न हो पाओगे। 'सिदधियां जन्म के समय प्रकट होती हैं, इन्हें औषधियों से, मंत्रों के जाप से, तपश्चर्याओं से या समाधि से भी अर्जित किया जा सकता है। जो कुछ भी तुम हो उसे तुम्हारे जन्म के समय बिना किसी प्रयास के प्रकट कर दिया जाता है। प्रत्येक बच्चा जिस समय उसका जन्म हो रहा होता है, सत्य को जानता है, क्योंकि अभी तक वह सम्मोहित नहीं हुआ है। उसकी कोई इच्छाएं नहीं हैं, वह अभी भी निर्दोष है, परिशुद्ध है, उसे किसी इरादे ने भ्रष्ट नहीं किया है। उसका अवधान शुदध, विकेंद्रित है। बच्चा स्वाभाविक रूप से ध्यानमय
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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