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________________ का नहीं है, यह अंतर केवल प्रभाव का है। एक पुरुष सचेतन रूप से पुरुष है, अचेतन रूप से स्त्री है; एक स्त्री सचेतन रूप से स्त्री है, अचेतन रूप से पुरुष है। एक बार तुम जान लो कि किस भांति से बाहर की स्त्री के साथ खेला जाए। और इसी कारण से मेरा जोर इसी बात पर है कि पहले तुमको बाहर का खेल सीखना पड़ता है, तभी तुम भीतर के सूक्ष्म स्त्री या पुरुष के साथ खेल खेलना आरंभ कर सकते हो। पहले तुम्हें बाहर की स्त्री या पुरुष को राजी करना पड़ता है, और वहीं यह खेल खेलना पड़ता है, क्योंकि यह बहुत स्थूल है और सरलता से सीखा जा सकता है। यह किसी अन्य महत् खेल की तैयारी मात्र है। फिर तुम भीतर जाते हो। फिर तुम उस दूसरे की खोज आरंभ करते हो जो तुम्हारे अस्तित्व में कहीं छिपा है, तुम इसे पा जाते हो, और तभी तुम्हारे भीतर एक गहरा चरम सुख, आर्गाज्य घटता है। यह चरम सुख उच्चतर से उच्चतर और विराटतर और विराटतर होता जाता है और सहस्रार पर, शीर्ष पर, तुम्हारे अस्तित्व के अंतिम केंद्र पर परम आर्गाज्य घटित होता है, जहां परम ईश्वर का परम प्रकृति से मिलन होता है, जहां दो परम मिलते हैं, संबंधित होते हैं और स्थ-दूसरे में विलीन हो जाते हैं, जहा चेतना पदार्थ से मिलती है, पुरुष प्रकृति से मिलता है, जहां दृश्य अदृश्य से मिलता है और परम समाधि घट जाती है। यह एक खेल है। तुम्हें इसे जितनी सुंदरता से संभव हो पाए खेलते रहना पड़ता है। और तुमको इसकी कला सीखनी पड़ती है। इसलिए यदि तुम दमन करते हो, तुम्हें लगातार दमन करना पड़ता है। यदि तुम दमन करते हो तो तुम्हें लगातार चौकीदारी करनी पड़ती है, और तुम विश्रांत नहीं हो सकते। विश्रांति केवल तभी संभव है जब तुम्हारे भीतर कोई शत्रु न हो, केवल तभी तुम विश्रांत हो सकते हो। अन्यथा तुम कैसे विश्रांत हो सकते हो, विश्रांति मन की एक अवस्था है जहा कोई दमन, इसका कोई चिह्न तक न हो। एक छोटा बच्चा विश्रांत हो जाता है। जितनी तुम्हारी आयु बढ़ती है उतना ही शांत हो पाना तुम्हारे लिए कठिन हो जाता है। एक छोटा बच्चा काफी गहराई तक शांत हो जाता है। जरा देखो, डाइनिंग टेबल पर भोजन करने के दौरान भी छोटा बच्चा सो सकता है। वह अपने खिलौनों से खेलते-खेलते भी सो सकता है। वह कहीं पर भी सो सकता है। और बड़ी आय के लोगों के लिए सोना, विश्रांत होना, प्रेम करना, विलीन हो जाना और- और कठिन होता जाता है। इतने अधिक दमन भरे पड़े हैं भीतर। और तुम सदैव इतना बोझ ढोते रहते हो, तुम अत्याधिक भार से दबे हुए हो। और यह भार बहुत जटिल भी है; यह सरल नहीं है। यदि तुम काम का दमन करते हो-इसको समझने का प्रयास करो-तुम्हें साथ ही साथ बहुत सी अन्य चीजों का भी दमन करना पड़ेगा, क्योंकि हर चीज परस्पर संबंधित है। अंदर से यह बहुत जटिल मामला है। यदि तुम काम का दमन करो तो तुमको अपनी श्वास का भी दमन करना पड़ेगा। तुम गहराई से भलीभांति श्वास नहीं ले सकते हो,
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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