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________________ संभव है यदि तुम धन कमाओ। तुम फैक्ट्री में इसलिए कार्य नहीं कर रहे हो क्योंकि तुम इससे प्रेम करते हो, तुम आफिस में इसलिए नहीं हो कि तुम इसे प्रेम करते हो। तुम्हें कुछ दूसरी वस्तुओं की चाह है, लेकिन वे कार्य के बिना उपलब्ध नहीं है, इसलिए तुम्हें किसी भी प्रकार से उनको पाने के लिए शर्त पूरी करनी पड़ती है। इसलिए तुम कार्य करते हो। लेकिन तुम्हारा लक्ष्य कहीं और है। खेल पूरी तरह अलग है। तुम खेल रहे हो; इसका कोई लक्ष्य नहीं है। यह स्वयं में ही लक्ष्य है। तुम सक्रियता का आनंद उसमें ही ले रहे हो। मैंने सुना है, लार्ड कार्नफोर्थ, लार्ड येले और लार्ड डोनिंग्टन एक रविवार को लान में बैठ कर तीसरे पहर की चाय पी रहे थे। उनकी बातचीत का विषय काम-संबंध की ओर मुड़ गया। लार्ड कार्नफोर्थ ने कहा कि यह नब्बे प्रतिशत सुख है औस दस प्रतिशत कार्य; लार्ड येले ने कहा कि यह पचास प्रतिशत कार्य है और पचास प्रतिशत सुख; लार्स डोनिंग्टन, जो उनमें सबसे अधिक उम्र के थे, ने कहा कि यह दस प्रतिशत सुख और नब्बे प्रतिशत कार्य है। अपने विवाद का समापन करने के लिए उन्होंने फूलों की क्यारी में काम कर रहे बूढ़े माली को बुलाया। जब उन्होंने यह प्रश्न उसके सामने रखा, तो उसने कहा, क्यों, निःसंदेह इस काम में सौ प्रतिशत सुख है, यदि इसमें जरा भी कार्य करना पड़ता, तो हुजूर, अपने लिए आप लोग यह काम भी हम नौकरों से ही करा लिया करते। खेल सौ प्रतिशत सुख है। परमात्मा के लिए हिंदू अवधारणा लीला करने वाले की है, और यह सारी सृष्टि लीला से रची गई है। और इस लीला में संलग्न ऊर्जा काम है। वहां अटक मत जाओ, क्योंकि और श्रेष्ठ खेल हैं; खेले जाने के लिए सूक्ष्मतर खेल हैं। पहले तुम बाहर की स्त्री से खेलते हो, यह निम्नतम संभावना है। फिर तुम भीतर की स्त्री से खेलना आरंभ करते हो। यही है जिसको योग सूर्य और चंद्र, पिंगला और इड़ा का मिलन कहता है। यदि तुम पुरुष हो तब भीतर की स्त्री के साथ या यदि तुम स्त्री हो भीतर के पुरुष के साथ तुम्हारा खेल आरंभ हो जाता है। और दोनों हैं तुम्हारे भीतर, कोई पुरुष केवल पुरुष नहीं है, उसके भीतर स्त्री है; कोई स्त्री केवल स्त्री नहीं है, उसके भीतर पुरुष है। ऐसा होना ही है, क्योंकि तुम्हारा जन्म दोनों के संगम से हुआ है। तुम्हारा पिता तुमको कुछ देता है, तुम्हारी मां भी तुमको कुछ देती है। चाहे तुम पुरुष हो या स्त्री, इससे जरा भी अंतर नहीं पड़ता। तुम दो ऊर्जाओं-स्त्री, पुरुष का सम्मिलन हो। दोनों तुममें आधाआधा योगदान देते हैं। तो एक पुरुष और एक स्त्री में क्या अंतर है? अंतर इस प्रकार का है. जैसे कि दो सिक्के हों, दोनों बिलकुल एक समान हों, लेकिन एक सिक्के का शीर्ष भाग ऊपर है, दूसरे सिक्के का पृष्ठभाग ऊपर है। दोनों बिलकुल एक से है। अंतर तो केवल प्रभाव का है। यह अंतर गुणवत्ता का नहीं है, यह अंतर ऊर्जा
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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