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________________ पहली हली बात, प्रश्नकर्ता ने अपने प्रश्न पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इससे स्पष्ट होता है कि वह भी इसके बारे में अपराध-बोध से ग्रस्त है। वह नहीं चाहता कि उसका नाम जाना जाए। प्रश्न के साथ हस्ताक्षर न करके उसने समलैंगिकता को पहले ही निदिंत कर दिया है। मैं किसी बात के विरोध में नहीं हूं लेकिन मैं अनेक बातों के पक्ष में हूं। मैं पुन: कहता हूं मैं किसी बात के विरोध में नहीं हूं लेकिन मैं अनेक बातों के पक्ष में हूं। मैं कीचड़ के विरोध में नहीं हूं मैं कमल के पक्ष में हूं। सेक्स का रूपांतरण किया जाना चाहिए। यदि इसका रूपांतरण न हो, तो तुम अपने अस्तित्व की निम्नतम पायदान पर बने रहोगे। अतः समझने के लिए पहली बात है, मैं सेक्स के बारे में बात करता हूं जिससे कि तुम इसको समझ सको और इसका अतिक्रमण कर सको। समलैंगिकता तो विषमलैंगिकता से भी निम्नतल पर है। इसमें गलत कुछ भी नहीं है, तुम्हारी सीढ़ी में अभी एक निचली पायदान और है उसका भी अतिक्रमण किया जाना है। इसलिए पहली बात, सेक्स का अतिक्रमण किया जाना है। याद करने के लिए दूसरी बात, समलैंगिकता और नीचे की पायदान है। प्रत्येक बच्चा आत्मलिंगि जन्म लेता है, हर बच्चा आत्मरति दशा में है। यह एक अवस्था है, बच्चे को उससे पार जाना है। हर बच्चा अपने यौन अंगों से खेलना पसंद करता है और यह सुखदायक है इसमें गलत कुछ भी नहीं है, लेकिन यह बचकाना है । यह सेक्स की पहली सीख है, एक पूर्व तैयारी, तैयार हो जाना, तैयारी है लेकिन यदि तुम पैंतीस चालीस साठ वर्ष के हो गए हो और भी आत्मरति दशा में हो, तो कुछ गड़बड़ है। जब मैं कहता हूं कुछ गड़बड़ है, तो मेरा अभिप्राय मात्र यही है कि तुम विकसित होने में समर्थ नहीं हो सके हो, तुम्हारी मानसिक आयु कम रह गई है। आत्मरति की अवस्था के बाद, जिसे मैं आत्मलिंगी कहता हूं बालक समलिंगी हो जाता है। दस वर्ष की आयु के आस-पास बालक समलिंगी हो जाता है। वह उन शरीरों में अधिक उत्सुक हो उठता है जो उसके शरीर जैसे हैं। यह एक स्वाभाविक विकास है। पहले वह अपने स्वयं के शरीर में उत्सुक था, अब वह शरीरों में रुचि रखता है जो उसके समान है- लड़का लड़कों में रुचि लेता है, एक लड़की लड़कियों में रुचि लेती है यह एक स्वाभाविक अवस्था है लेकिन लड़का स्वयं से दूर जा रहा है, अपनी काम-ऊर्जा को कामेच्छा को अन्य लड़कों की ओर गतिशील कर रहा है और यह प्राकृतिक लगता है। क्योंकि अन्य लड़के उसे अन्य लड़कियों की तुलना में अपने समान लगते हैं लेकिन उसने एक कदम उठा लिया है; वह समलिंगी हो गया है। ठीक है, कुछ भी गलत नहीं है इसमें, लेकिन यदि साठ वर्ष की आयु में अब भी तुम समलैंगिक हो, तो तुम मंदबुद्धि हो, तुममें लड़कपन है। इसीलिए समलैंगिक लोगों में लड़कपन वाला ढंग कायम रहता है और वे खुश दीखते हैं। यह निश्चित है कि वे विषमलिंगियो से अधिक खुश दिखाई पड़ते हैं। उनके चेहरों में भी लड़कपन की छाप रहती है। अपनी ,
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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