SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खिलते हैं। और मैं कल्पना नहीं कर सकता कि यदि उनको सिखाया जाए कि तुम्हारे खिलने का एक उद्देश्य है, तो वे किस प्रकार और अच्छे ढंग से खिलेंगे, मुझे ऐसा नहीं दीखता। वे बस उसी ढंग से खिलते हैं। वे अपनी ओर से महत्तम प्रयास कर रहे हैं। क्या तुम सोचते हो कि यदि कोयल को बता दिया जाए कि गाने का क्या उददेश्य है, तो वह बेहतर ढंग से गा रही होगी। मैं सदा से सोचता हूं कि जानवर आदमी पर अवश्य हंस रहे होंगे। मनुष्य के बारे में पशुओं के मध्य कई चुटकुले अवश्य प्रचलित होंगे। मनुष्य को पृथ्वी पर बहुत भद्दी, असंगत घटना होना चाहिए। एक फूल खिलता है, तो उसे खिलने के लिए किसी उद्देश्य की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन तुम्हें उद्देश्य चाहिए। तुम किसी को प्रेम कर सकते हो, लेकिन क्या उद्देश्य है? प्रेम को किसी उद्देश्य की आवश्यकता है? तो तुम सारी बात से चूक जाओगे। ऐसे भी लोग हैं जो प्रेम भी उददेश्यपूर्वक करते हैं। जीवन अर्थशास्त्र नहीं है। यह आंतरिक रूप से मूल्यवान है। और एक बार तुम यह समझ लो, एक महत् उत्कांति तुम्हें घट जाती है। फिर तुम बस श्वास लेते हो, और श्वास लेना बहुत सुंदर, बहुत शांतिदायक, बहुत आशीषमयी हो जाता है। तब हर क्षण स्वयं में अर्थ बन जाता है। अर्थ कहीं बाहर नहीं है। फिर तुम इस क्षण को उसी के लिए जीते हो। तुम गाते हो, क्योंकि तुम्हें गाने से प्रेम है। तुम नृत्य करते हो, क्योंकि नृत्य करना अति सुंदर है। तुम प्रेम करते हो, क्योंकि प्रेम जैसा और कुछ भी नहीं है। यदि तुम उद्देश्य पूछो तब तुम्हारा मन वेश्या का है। वेश्या प्रेम कर सकती है, लेकिन इसमें एक उद्देश्य निहित है। जो सदैव पूछते रहते हैं कि जीवन का क्या उद्देश्य है? उन लोगों के पास वेश्या का मन है। जीवन को जैसा यह है वे स्वीकार नहीं कर सकते हैं। इसको अर्थपूर्ण बनाने के लिए उन्हें कुछ और चाहिए। जरा समझने का प्रयास करो, प्रत्येक क्षण अपने आप में पर्याप्त है, और प्रत्येक कृत्य अपने आप में परिपूर्ण है; और जो कुछ भी तुम करते हो करना स्वयं में एक गरिमा है। कुछ और नहीं चाहिए। और तब अचानक तुम मुक्त हो जाते हो। क्योंकि एक व्यक्ति जो उद्देश्य उन्मुख है कभी मुक्त नहीं हो सकता। उद्देश्य सदा भविष्य में होता है। आज तुम किसी ऐसी चीज के लिए जीते हो जो कल होने जा रही है, कौन जाने, तुम ही मर जाओ। फिर तुम एक अतृप्त जीवन जीयोगे, और कल पुन: तुम किसी भविष्य के कल के लिए जीयोगे, क्योंकि प्रत्येक कल आज बन कर आता है और तुमने गलत ढंग से आज को कल के लिए बलिदान करना सीख रखा है। यदि तुम उद्देश्य के प्रश्न से आसक्त हो चुके हो, तुम पूछते चले जाओगे। चाहे जो कुछ भी हो तुम पूछोगे 'इसका क्या उद्देश्य है?' लोग मेरे पास आकर पूछते हैं, आप हमें ध्यान करने को कहते हैं लेकिन क्या उददेश्य है इसका? ध्यान करने के लिए किस उददेश्य की आवश्यकता पड़ती है? ध्यान इतना शांत है, आनंद से इतना ओतप्रोत है, किसी और उददेश्य की आवश्यकता नहीं है। यह किसी और बात के लिए साधन नहीं है। यह स्वयं में साध्य है।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy