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________________ अदम को संसार में आगे भेजा गया, निकाला नहीं गया। ईश्वर किसी को कैसे निकाल सकता है? यह असंभव है, उसकी करुणा ऐसा न होने देगी। और तुम्हारे विकास का यह एक हिस्सा है कि तुमको दूर जाना चाहिए और गलतियां करनी चाहिए, क्योंकि केवल तभी धीरे-धीरे तुम बोधपूर्ण, जागरूक हो जाओगे। और तुम्हारी स्वयं की जागरूकता से गलतियां विदा होने लगेंगी, तुम घर वापस आ जाओगे। और तुम ईश्वर को सदैव तुम्हारे स्वागत हेतु तैयार पाओगे। ईश्वर तुम्हारा स्रोत है, और यह उस सबका स्रोत है जो तुम्हारे साथ घटता है। मत पूछो, 'कैसे? क्यों? किसलिए?-कुछ भी स्पष्ट नहीं है।' हां, इसे उसी ढंग का होना पड़ता है। यदि सब कुछ स्पष्ट हो तो विकसित होने की आवश्यकता ही नहीं है। क्योंकि कुछ भी स्पष्ट नहीं है तुमको जागरूकता में विकसित होना है जिससे कि चीजें स्पष्ट हो जाएं। मुल्ला नसरुद्दीन अस्पताल में था। उसको आंख की कुछ तकलीफ थी। एक सप्ताह के बाद डाक्टर ने उससे पूछा. नसरुद्दीन क्या दवाइयों से तुम्हें कुछ फायदा हो रहा है? उसने कहा : निश्चित तौर से, अब मैं और स्पष्टता से और साफ ढंग से देख सकता हूं। उदाहरण के लिए परिचारिकाएं अब रोज-रोज सामान्य आम रूप-रंग की होती जा रही हैं। जब तुम स्पष्टता से देख सकते हो तो निःसंदेह परिचारिकाएं और-और आम रंग-रूप की हो जाती हैं। जब तुम्हें साफ न दिखाई देता हो तो हर स्त्री सुंदर होती है। यदि सब कुछ स्पष्ट हो, तो तुम्हारी आंखें साफ करने की कोई जरूरत ही न रह जाएगी। सारी बात यही है, सारा खेल यही है कि चीजें स्पष्ट नहीं हैं। इसलिए तुमको अपने मन में अधिक स्पष्टता लानी पड़ती है जिससे कि तुम अपने लिए रास्ते का चुनाव कर सको। चीजें एक अराजकता में है। तुमको अपने भीतर जागरूकता लानी पड़ती है ताकि तुम अराजकता में अपना रास्ता चुन सको और उचित ढंग से चल सको। अराजकता वहां समझ-बूझ कर है, इसे वहां होना ही है। शैतान के कारण अराजकता नहीं है वहां यह परमात्मा के कारण है। यह जिग सा पज़ल, उलझन भरी पहेली, की भांति है। हूं......यदि सब कुछ स्पष्ट है तो पहेली का मतलब ही क्या है न' एक छोटे बच्चे को तुम जब जिग सा पज़ल देते हो, तो तुम सारे टुकड़ों को मिला देते हो, तुम बच्चे को दिग्भ्रमित कर देते हो और फिर तुम बच्चे से कहते हो, अब तुम इसे ठीक से लगाओ। इसे सुव्यवस्थित करने में वह वास्तव में अधिक जागरूक, संलग्न, एकाग्रचित्त, ध्यानपूर्ण हो जाता है। यदि तुम उसे हल की हुई पहेली दे दो, तो उसे इस पहेली को देने में क्या अर्थ है? यह संसार एक उलझन भरी पहेली है और परमात्मा इसे गड्ड-मड्ड कर हमें दिग्म्रमित करता रहता है। यही तो मैं यहां तुम्हारे साथ कर रहा हूं। किसी प्रकार से तुम अपनी जिग सा पजल को ठीक से जमाने का प्रयास करते हो, मैं पुन: कुछ करता हूं और गड्ड-मड्ड कर देता हूं और तुम्हें दिग्भ्रमित
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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