SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'बस जीना है?' फिर तो तुम्हारा जीवन एक ऊब बन जाएगा। और तुम इसका अर्थ यह निकाल सकते हो कि यह धार्मिक जीवन है। यह नहीं है। ऊबा हुआ व्यक्ति धार्मिक व्यक्ति नहीं है। आनंदित व्यक्ति ही धार्मिक व्यक्ति है। लेकिन मैं जानता हूं बहुत से ऊबे हुए लोग धार्मिक होने का दिखावा करते हैं। अनेक लोग जो जीवन नपुंसक, असृजनात्मक थे, किसी प्रकार की प्रसन्नता के लिए पात्र नहीं थे जीवन के विरोध में हो गए हैं, जीवन - निषेधक हो गए हैं, और उन्होंने जीवन को निंदित करने, कि जीवन व्यर्थ है, कि इसमें कोई सार नहीं है, कि यह मात्र एक दुर्घटना है, कि यह एक उपद्रव है, इससे बाहर आ जाओ, इसे न कर दो की एक लंबी परंपरा निर्मित कर दी है। इन लोगों को तुम महात्मा कहते हो, इन्हें तुमने महान संत कहा है। ये बस विक्षिप्त हैं। इनको चिकित्सकीय देखभाल की जरूरत है। इन्हें अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता हैं। तुम्हारे निन्यानबे प्रतिशत तथाकथित संत विकृत हैं, लेकिन वे अप विकृति को इस भांति छिपा रहे हैं कि तुम असली बात नहीं देख सकते। ईसप की एक कथा है: एक लोमड़ी अंगूर पाने के लिए कूदने का प्रयास कर रही थी वे पके हुए और ललचाने वाले थे और उनकी सुगंध लोमड़ी को करीब-करीब पागल किए दे रही थी, लेकिन अंगूरों का गुच्छा उसकी पहुंच से बहुत दूर था। लोमड़ी उछली, और उछली, पहुंच न सकी, असफल रही, फिर उसने चारों ओर देखा कहीं किसी ने उसकी असफलता को देख तो नहीं लिया है? एक नन्हा खरगोश एक झाड़ी के नीचे छिपा हुआ था, और उसने कहा क्या हुआ मौसी ? आप अंगूरों तक पहुंच नहीं सकी? वह बोली नहीं, बेटा यह बात नहीं है, अंगूर अभी तक पक नहीं पाए हैं, वे खट्टे हैं। : यही तो है जो तुमने अब तक धर्म के नाम पर जाना है- अंगूर खट्टे हैं- क्योंकि उन लोगों को वे मिल नहीं पाते, वे उन तक पहुंच नहीं सकते। ये लोग असफल हैं। धर्म का असफलता से कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह परितृप्ति, फलित होना, पुष्पित होना, परम ऊंचाई, शिखर है। अब्राहम मैसलो जब कहता है कि धर्म का संबंध 'शिखर अनुभवों से है, तो वह सही है। लेकिन जरा चर्चा में, आश्रमों में, मंदिरों में बैठे अपने धार्मिक लोगों की सूरतें देखो, उदास ऊबे हुए लंबे चेहरे बस मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं कि वह कब आकर उनको ले जाए। जीवन-निषेधक, जीवनविरोधी मतांधतापूर्वक जीवन के विरोध में, और जहां कहीं भी उन्हें जीवन दिखाई देता है वे उसे मार देने और नष्ट करने के लिए आतुर हो जाते हैं। वे तुम्हें चर्च में हंसने की अनुमति नहीं देंगे, वे तुम्हें चर्च में नृत्य न करने देंगे, क्योंकि जीवन का कोई भी लक्षण दिखाई दिया और वे परेशानी में पड़
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy