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________________ और दूर जाती है; उस व्यक्ति का चलना जारी रहता है-इससे पहले जब तुम्हें पता लगा कि वह सड़क पर था और उसके बहुत बाद तक जब वह तुम्हारी दृष्टि से ओझल हो गया था। क्या घटित हो रहा है? वस्तुओं के साथ बिलकुल ठीक यही मामला है। जितना ऊपर तुम उठते हो, जितना तुम सहस्रार के निकट पहुंचते हों-तुम जीवन के वृक्ष पर चढ़ रहे हो। सहस्रार देख पाने के लिए उच्चतम बिंदु है। उससे ऊंची कोई और ऊंचाई नहीं है। सहस्रार से तुम चीजों को देखते हो, हर चीज सतत गतिमान है और गतिशील रहती है। न कोई रुकता है, न कुछ मिटता है। कठिन है यह बात; यह उतनी ही कठिन है जैसे कोई भौतिकविद चरम इलेक्ट्रान, क्वांटा के बारे में समझाए, कि यह तरंग और कण, दोनों एक साथ, बिंदु और रेखा दोनों हैं। तुम एक वायुयान में बैठ कर गंगा के ऊपर से उड़ान भर रहे हो, और गंगा बह रही है, यदि मैं तुमसे पूर्वी क्या गंगा एक प्रक्रिया है? क्या गंगा प्रवाहित हो रही है या यह कि गंगा है? तुम क्या कहोगे? तुम कहोगे, दोनों। तुम कहोगे, गंगा है, क्योंकि तुम इसको एक छोर से दूसरे तक एक साथ ही देख सकते हो। तुम गंगा को हिमालय में देख सकते हो, तुम गंगा को मैदानों में देख सकते हो, तुम गंगा को सागर में गिरता हुआ देख सकते हों-एक ही साथ-अतीत, वर्तमान, भविष्य खो गए हैं। एक निश्चित ऊंचाई से देखने पर तुम्हारे लिए पूरी गंगा उपलब्ध है। यह है और फिर भी तुम जानते हो कि यह प्रवाहित हो रही है। यह दोनों है-होना और हो जाना, यह दोनों है, तरंग और कण, बिंदु और रेखा है, और फिर भी एक प्रक्रिया है। यह विरोधाभासी है, यह विरोधाभासी प्रतीत होता है, क्योंकि हमें नहीं पता कि ऊंचाई से चीजें कैसी दिखाई पड़ती हैं। सूत्र कहता है : 'यथार्थ के बोध से उत्पन्न उच्चतम शान अतिक्रमण कर लेता है... ' यह सभी दवैतों का, और प्रक्रिया की ध्रुवीयताओं का, स्थैतिक और गतिशील, तरंग और कण जीवन और मृत्य का, अतीत और भविष्य का सभी द्वैतों का, सभी ध्रुवीयताओं का अतिक्रमण कर लेता है। यह परे है।'तारक सर्वविषयं' –यह शान की सभी वस्तुओं का अतिक्रमण कर लेता है। '....सभी विषयों की तत्क्षण पहचान को समाहित किए हुए है...'और इस चेतना के लिए 'सर्वज्ञ' शब्द प्रयोग किया जाता है। यह समझने में कठिन है, इस बात को समझ पाना करीब-करीब असंभव है। इसका अभिप्राय है परम समझ वाला व्यक्ति, यदि वह तुम्हारी ओर देखता है, वह तुमको एक साथ ही-जब तुम मां के गर्भ में थे और तुम्हारा जन्म हो रहा था; इसके साथ ही साथ तुम बड़े हो रहे थे और तुम बच्चे थे, और तुम युवक बन गए और तुमने एक स्त्री के साथ विवाह किया था, और फिर तुम उसके प्रेम में पड़ गए थे; फिर तुम्हारे यहां बच्चों का जन्म हआ, और तम के हो गए, और तम
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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