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________________ एक बार तुम समग्र हो, फिर मा बन जाओ, पिता बन जाओ, तब तुम ऐसे बच्चे को जन्म दोगे जो स्वतंत्रता होगा, जो स्वास्थ्य और समग्रता होगा, जो अनुग्रह से भरा होगा, और वह संसार के लिए एक भेंट होगा। और वह संसार को जैसा यह है उससे कुछ बेहतर बनाएगा। अन्यथा नहीं, वरना तुम ही पर्याप्त हो! 'आप मुझको उस व्यक्ति के साथ एक ही कमरे में क्यों रखते हैं?' क्रोधित रोगी ने पागलखाने के डाक्टर से पूछा। अस्पताल में भीड़ अधिक हो गई है, डाक्टर ने समझाया। क्या वह कोई परेशानी पैदा कर रहा है? परेशानी, अरे वह तो पागल है! वह कमरे में चारों ओर यह कहते हए देखता रहता है, 'न शेर हैं, न चीते हैं, न हाथी हैं, और सारे समय कमरा उन से भरा रहता है! पागल लोग सोचते हैं कि दूसरे पागल हैं। पागल लोग कभी नहीं सोचते हैं कि वे पागल हैं। एक बार कोई पागल यह पहचान ले कि वह पागल है, तो वह सामान्य होने के रास्ते पर चल पड़ता है। अपने पागलपन को देखने का प्रयास करो, इसे पहचानो। इससे तुम्हें सामान्य होने में सहायता मिलेगी। बकवास करना, पूर्णत्व की चिंता करते रहना। समग्र होने का प्रयास करो। अन्यथा यह पूर्णत्व तुम्हें पगला देगा। समग्र हो जाओ। जो कुछ तुम करना चाहते हो करो, लेकिन इसे समग्रतापूर्वक करो। इसमें विलीन हो इसमें पिघल- जाओ, और तुम्हें धीरे-धीरे अपने अस्तित्व में खिलावट मिलने लगेगी। फिर, तब वहां तुम्हारे भीतर पूर्णता का कोई खयाल न बचेगा। लेकिन तुम अपूर्ण विभाजित, खंड-खंड हो। इसीलिए लगातार यह विचार उठता रहता हैं, कैसे पूर्ण हआ जाए? समग्र हो जाओ, और यह विचार अपने आप से गिर जाएगा। 'अभिमान' और 'अभिनेता व्यक्तित्व'। नि:संदेह वे लोग जो पूर्ण। होने के लिए प्रयास रत हैं, अभिनेता व्यक्तित्व ही बन जाएंगे। उनके पास मुखौटे होंगे, वे स्वयं को मुखौटों के पीछे छिपा लेंगे। वे दूसरों को अपनी सच्चाई नहीं देखने देंगे। वे सदैव कुछ कुछ का कुछ दिखाने का प्रयास करेंगे, वे पाखंडी बन जाएंगे। वे सदा अभिनय करने की कुछ दिखाने की कोशिश करेंगे। उन्हें पता है कि वे कौन हैं, और वे सिद्ध करने का प्रयास करेंगे कि वे कोई और हैं। और कठिनाई यह है कि भले ही वे दूसरों को समझाने में सफल न हो पायें लेकिन स्वयं को समझा पाने में वे सदैव सफल हो जाते हैं। इसी प्रकार से विक्षिप्तता का आरंभ होता है। चाहे जो भी मूल्य हो, बस स्वयं हो जाओ। चाहे जो भी मूल्य हो, स्वयं हो जाओ। निष्ठावान बनो। आरंभ में बहुत भय होगा, क्योंकि तुम सोचते हो कि तुम एक महान व्यक्ति हो, और अचानक तुम
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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