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________________ - अतः कर्म में बहुत अधिक डूबे मत रहो, अस्तित्व में और और डूबो और यही है ध्यान का सब कुछ। बिना कुछ किए होना सीखना है यह कैसे हुआ जाए बिना कुछ किए। बस होना और तुम इसी क्षण में गहरे और गहरे और गहरे उतरना आरंभ कर देते हो। और समय मैं यही ऊर्ध्वाधर गति शाश्वतता है। तुम्हारे भीतर दोनों मिलते हैं- समय और शाश्वतता। अब इसका निर्णय तुम्हीं को करना है। यदि तुम महत्वाकांक्षा में जाते हो, तुम्हारी गति समय में होगी; और समय में मृत्यु का अस्तित्व है। यदि तुम इच्छा में गति करो तो तुम समय में जाओगे और समय में मृत्यु का अस्तित्व है। मृत्यु, अहंकार, इच्छा, महत्वाकांक्षा वे सभी क्षैतिज रेखा के अवयव हैं। यदि तुम इसी क्षण में खोदना आरंभ करो और ऊर्ध्वाधर गति करो, तुम निर अहंकार हो जाते हो, तुम इच्छा विहीन हो जाते हो, तुम महत्वाकांक्षा शून्य हो जाते हो। लेकिन अचानक तुम जीवन से प्रज्जलित हो उठते हो, तुम जीवन की घनीभूत ऊर्जा हो। परमात्मा ने तुमको अधिकृत कर लिया है। ऊर्ध्वाधर गति करो और सारे संताप खो जाते हैं। , बकवास करना, पूर्णत्व की चिंता करते रहना, यह भी तुम्हारे ऊपर थोपा गया है। तुम्हें पूर्ण होना सिखाया गया है। वास्तविक बात समग्र होना है, पूर्ण नहीं कोई भी पूर्ण नहीं हो सकता, क्योंकि पूर्णता एक स्थिर बात है। जीवन है गति। जीवन में कुछ भी पूर्ण नहीं हो सकता क्योंकि अधिक पूर्णता, और अधिक पूर्णता संभव है। यह विकसित होता जाता है, कोई अंत नहीं हैं इसका एक सतत विकास है यह, सातत्य है! यह सदा विकासमान है, सदैव क्रांति घटती है इसमें यह कभी उस बिंदु पर नहीं आता जहां तुम कह सको, 'अब यह पूर्ण हैं । ' पूर्णता एक छद्म विचार है, लेकिन अहंकार इसे चाहता है। अहंकार पूर्ण होना चाहता है, अतः यह तुमसे बकवास करता रहता है पूर्ण हो जाओ। तब यह तनाव, पागलपन और विक्षिप्तताएं निर्मित करता है और अहंकार बनाए चला जाता है; अहंकार के खेल अभी उसी दिन में एक परिभाषा पढ़ रहा था। इस परिभाषा में बताया गया है, न्यूरोटिक वह व्यक्ति है जो हवाई किले बनाता है, और साइकोटिक व्यक्ति वह है जो उन किलों में रहता है, और मनोचिकित्सक वह है जो किराया जमा करता है। यदि तुम न्यूरोटिक या साइकोटिक बनना चाहते हो तो पूर्ण होने का प्रयास करो। और अभी तक पृथ्वी पर जितने भी धर्म हैं- संगठित धर्म, चर्च- लोगों को पूर्ण होना सिखाते रहे हैं। जीसस ने उसे नहीं सिखाया, ईसाईयत ने सिखाया है। बुद्ध ने उसे नहीं सिखाया, लेकिन बौद्ध धर्म ने सिखाया है। सभी संगठित धर्म लोगों को पूर्ण होना सिखाते रहे हैं। बुद्ध, जीसस, लाओत्सु, उन्होंने कुछ बिलकुल भिन्न बात कही है; उन्होंने कहा, समग्र हो जाओ। 'समग्र' में और 'पूर्ण होने में क्या अंतर है? पूर्ण होना क्षैतिज रेखा है, पूर्णता भविष्य में कहीं है। समय होने को इसी क्षण में किया जा सकता है,
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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