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________________ तुम्हारी महत्वाकांक्षा के अतिरिक्त और कोई तुम्हारा रास्ता नहीं रोक रहा है। अतः कृपणता महत्वाकांक्षा का भाग है। - यह प्रश्न बोधिधर्म ने पूछा है। वह बहुत महत्वाकांक्षी है। सांसारिक अर्थों में नहीं उसे बड़ा मकान नहीं चाहिए उसे बड़ी कार की जरूरत नहीं है, उसे बड़े बैंक एकाउंट की आवश्यकता नहीं है। नहीं, उस ढंग से वह सरल है, बहुत सरल, लगभग महात्मा । उसके पास ज्यादा कुछ नहीं है और उसे इसकी चिंता भी नहीं है। लेकिन वह संबुद्ध होना चाहता है यही है उसकी समस्या और उसको संबुद्ध हो जाने की बहुत जल्दी है। सारी मुदताओं को गिरा दो अभी और यहीं जीयो भविष्य में किसी संबोधि की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि तुम अभी यहीं जीयो, तुम संबुद्ध हो। जिस दिन तुम यह जान लोगे कि जीवन को इसी समय, अभी यहीं जीया जाना चाहिए तुम संबुद्ध हो। जब व्यक्ति कभी अतीत के बारे में नहीं सोचता और न ही भविष्य की सोचता है। यह पल पर्याप्त है, अपने आप में काफी है। सारा संताप खो जाता है। संताप है क्योंकि तुम - जीने में समर्थ नहीं हो। इसलिए तुम लक्ष्य निर्मित करते हों - संबोधि एक लक्ष्य है, इससे तुम्हें एक अनुभूति मिलती है कि तुम महत्वपूर्ण हो, कि तुम कुछ कर रहे हो, तुम्हारा जीवन अर्थपूर्ण है तुम कोई अर्थहीन जीवन नही जो रहे है। तुम एक महान आध्यात्मिक खोजी हो। सभी अहंकार की यात्राएं हैं। . संबोधि कोई लक्ष्य नहीं है। यह परिणाम है। तुम इसे खोज नहीं सकते। तुम इससे कोई लक्ष्य नहीं बना सकते। यह इच्छा की वस्तु नहीं बन सकता है। जब तुम इच्छा रहित होकर अभी यहीं जीना आरंभ कर देते हो, अचानक यह वहां होती है। परिणाम है यह यह ऊर्जस्वी जीवन, एक जीवंत व्यक्तित्व का - इतना जीवंत और इतना सघन, इतना प्रज्वलित, कि इसी क्षण में वह समय में इतना गहरा उतर जाता है कि वह शाश्वत को स्पर्श कर लेता है, का परिणाम है। — समय में दो गतियां है। पहली, एक पल से दूसरे पल की ओर - क्षैतिज - अ से ब को, ब से सको, स से द को इसी भांति तुम जीया करते हो, इसी प्रकार से इच्छा चलती है क्षैतिज। एक वास्तविक रूप से जीवंत व्यक्ति, संवेदनशील, जागरूक व्यक्ति अ से ब की ओर नहीं जाता, वह अ में गहरे उतरता है, अ में और गहरे उतरता है, और गहरे और गहरे और गहरे, उसकी गति ऊर्ध्वाधर होती है। जीसस के क्रास का यही अर्थ है। क्रास ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज जीसस के हाथ फैले हैं। उनका पूरा शरीर ऊर्ध्वाधर भाग पर है दिशा में गति करते हैं। अस्तित्व ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान होता है। दोनों है। क्रास के क्षैतिज भाग पर हाथ कर्म के प्रतीक है; कर्म क्षैतिज
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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