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________________ समस्या तुरंत ही किसी और पर स्थानांतरित हो जाएगी। यह ऐसा ही है जैसे कोई सर्प अपनी केंचुली उतारता रहता है, लेकिन सांप वही रहता है। यह 'क्यों?' ही सर्प है। जब तुम रोया करती थी तब भी यही चिंतित था। अब रोना बंद हो चुका है, तुम हंस रही हो। सांप अपनी पुरानी केंचुली से बाहर आ गया है। अब समस्या है, क्यों? क्या तुम बिना किसी 'क्यों' के जीवन को नहीं सोच सकती? तुम जीवन को समस्या क्यों बना लेती हो? एक व्यक्ति किसी यहूदी से बात कर रहा था, और वह व्यक्ति प्रश्नों के उत्तर को अन्य प्रश्नों द्वारा देने की यहूदी आदत से बहुत नाराजगी अनुभव कर रहा था। नाराज होकर अंत में उस व्यक्ति ने कहा : तुम यहूदी लोग प्रश्नों का उत्तर प्रश्नों द्वारा ही क्यों दिया करते हो? यहूदी ने उत्तर दिया : हम ऐसा क्यों न करें? लोग एक वर्तुल में घूमते चले जाते हैं। हम ऐसा क्यों न करें, फिर एक प्रश्न पूछ लिया गया। जरा इस के भीतर देखो। यदि तुम हंस रही हो, सुंदर है यह बात। वास्तव में यदि तुम मुझसे पूछो तो रोना भी सुंदर बात थी, इसमें कुछ भी गलत नहीं था। यदि तम मझसे वास्तव में पछती हो, तब मैं कहूंगा जो कुछ भी है, स्वीकारो। यथार्थ को स्वीकार करो, और तब रोना भी सुंदर है, और 'क्यों?' की पूछताछ में उलझने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि यह पूछताछ तुम्हें तथ्यात्मकता से भटका देती है। तब रोना महत्वपूर्ण नहीं है-तुम क्यों रो रही हो। कारण की तलाश करते हुए, तब वास्तविक खो जाता है और तम कारण का पीछा करती रहती हो, यह कहां है? तुम्हें कारण कहां मिल सकता है? तुम कारण कैसे पा सकती हो? तुम्हें संसार की प्राथमिक उत्पति तक जाना पड़ेगा, वहां कभी कोई आरंभ नहीं हुआ था। जरा सोचो। 'क्यों?' का उत्तर देने के लिए आत्यंतिक रूप से तुम्हें संसार के बिलकुल आरंभ तक जाना पड़ेगा। और कोई आरंभ कभी था ही नहीं। संसार हमेशा से, सदा और सदा रहा है। जीने के लिए किसी प्रश्न की आवश्यकता नहीं है। और उत्तरों की प्रतीक्षा मत करो, प्रश्नों को गिराना आरंभ कर दो। जीयो, और तथ्य के साथ जीयो। रोना-चिल्लाना हो, रोओ। इसका आनंद लो। यह एक सुंदर घटना है, विश्रांतिदायक, निर्मल करने वाली, शुद्ध करने वाली। हंसना सुंदर है, हंसो। हंसी को अपने ऊपर मालकियत कर लेने दो। ऐसे हंसो कि तुम्हारा सारा शरीर इससे आंदोलित और इसके साथ कंपित हो। यह शुद्ध करने वाला होगा, यह जीवंतता देने वाला होगा, यह तुम्हें पुन: ताजगी से भर देगा। लेकिन तथ्य के साथ रहो। कारणों में मत जाओ। अस्तित्वगत के साथ रहो इसकी चिंता मत लो कि यह इस भांति क्यों है, क्योंकि इसका उत्तर नहीं दिया जा सकता है। बुद्ध ने अपने शिष्यों से कई बार
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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