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________________ एक बार ऐसा हुआ, कोई व्यक्ति एक पागल नवयुवक को मेरे पास लेकर आया। उस नवयुवक के मन में एक भ्रामक विचार था कि सोते समय उसकी नाक या मुंह से होकर एक मक्खी उसके शरीर में प्रविष्ट हो गई है और यह उसके भीतर भिनभिनाती रहती है। इसलिए निःसंदेह वह बहुत परेशानी में था। वह इधर को मुड़ता, उधर को मुड़ता और अपने अंदर घूमते दरवेशों के कारण ढंग से बैठ भी न पाता, वह सो भी नहीं सकता, एक सतत उपद्रव। इस आदमी के साथ क्या किया जाए? इसलिए मैंने उनसे कहा : तुम बिस्तर पर लेट जाओ, दस मिनट आराम करो, और जो किया जा सकता है हम करेंगे। मैंने उसे एक चादर ओढ़ा दी जिससे वह देख न सके कि क्या हो रहा है, और कुछ मक्खियां पकड़ने को सारे घर में इधर-उधर दौड़ता फिरा। यह मुश्किल था, क्योंकि मैंने पहले कभी मक्खी पकड़ी नहीं थी। लेकिन लोगों को पकड़ने के अनुभव से सहायता मिली। किसी भी तरह से मैं तीन मक्खियां पकड़ सका। उन्हें मैंने एक बोतल में बंद किया उस आदमी के पास लाया, उसके ऊपर कुछ ऊटपटांग तरह से हस्त संचालन किय तब उसे आंखें खोलने को कहा और उसे मैंने वह बोतल दिखाई। उसने उस बोतल को देखा। वह बोला, जी हां, आपने कुछ मक्खियां पकड़ ली हैं, लेकिन ये छोटी वाली हैं, बड़ी वाली अभी भी भीतर हैं और वे बहुत बड़ी हैं। अब मामला कठिन हो गया। इतनी बड़ी मक्खियां कहां से लाई जाती? उसने कहा : मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं कम से कम आपने छोटी मक्खियों से छुटकारा दिला दिया है, लेकिन बडी मक्खियां वास्तव में बहुत बड़ी हैं। लोग उलझे रहते हैं। यदि तुम एक ओर से उनकी सहायता करो, वे उसी समस्या को दूसरी ओर से ले आएंगे-जैसे कि निश्चित तौर से उसकी गहरी जरूरत हो। इसको समझने का प्रयास करो। समस्या के बिना जीना बेहद कठिन है, मानवीय स्तर पर करीब-करीब असंभव। क्यों? क्योंकि समस्या तुम्हें घबड़ा देती है। समस्या से तुम्हें कार्य मिल जाता है। समस्या से तुम्हें किसी व्यस्तता के बिना व्यस्तता मिल जाती है। समस्या तुम्हें उलझाए रखती है। यदि कोई समस्या न हो तो तुम अपने अस्तित्व की परिधि से चिपके नहीं रह सकते'। तुम केंद्र द्वारा आकर्षित कर लिए जाओगे। और तुम्हारे अस्तित्व का केंद्र रिक्त है। बिलकुल पहिए के धुरे की भांति होता है यह। रिक्त धुरे पर पूरा पहिया घूमता है। तुम्हारा अंतर्तम केंद्र रिक्त, कुछ नहीं, ना-कुछपन, शून्य, खाली, खाई की भांति है। तुम उस खालीपन से भयभीत हो, इसलिए तम पहिए की परिधि से चिपके रहते हो, अथवा यदि तुम थोड़े साहसी हो तो अधिक से अधिक तुम तीलियों से चिपके रहते हो; लेकिन तुम धुरे की ओर कभी नहीं बढ़ते। व्यक्ति भयभीत, कंपित अनुभव करने लगता है। समस्याएं तुम्हारी सहायता करती हैं। सुलझाने के लिए कोई समस्या हो तो तुम भीतर कैसे जा सकते हो? लोग मेरे पास आते हैं और वे कहते हैं, हम भीतर जाना चाहते हैं, लेकिन कुछ समस्याएं हैं। वे
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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