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________________ तुम कोई अहंकार की खोज में संलग्न नहीं हो, बल्कि तुम तो समग्र को उपलब्ध करने का प्रयास कर रहे हो, और समय तभी संभव हो पाता है जब अहंकार के खेलों के सारे प्रकार छोड़ और त्याग दिए जाएं, जब तुम न बचो, बस परमात्मा रहे। मैं तुम्हें एक प्रसिद्ध सूफी कहानी पवित्र छाया' सुनाता हूँ। एक बार की बात — है, एक इतना भला फकीर था कि स्वर्ग से देवदूत यह देखने आते थे कि किस प्रकार सए एक व्यक्ति इतना देवतुल्य भी हो सकता है। यह फकीर अपने दैनिक जीवन में, बिना इस बात को जाने, सदगुणों को इस प्रकार से बिखेरता था जैसे सितारे प्रकाश और फूल सुगंध फैलाते हैं। उसके दिन को दो शब्दों में बताया जा सकता था- बांटों और क्षमा करो फिर भी ये शब्द कभी उसके होंठों पर नहीं आए। वे उसकी सहज मुस्कान, उसकी दयालुता, सहनशीलता और सेवा से अभिव्यक्त होते थे देवदूतों ने परमात्मा से कहा प्रभु उसे चमत्कार कर पाने की भेंट दें। परमात्मा ने उत्तर दिया, उससे पूछो वह क्या चाहता है। उन्होंने फकीर से पूछा, क्या आप चाहेंगे कि आपके छूने भरसे ही रोगी स्वस्थ हो जाए। नहीं, फकीर ने उत्तर दिया, बल्कि मैं तो चाहूंगा परमात्मा ही इसे करें। क्या आप दोषी आत्माओं को परिवर्तित करना और राह भटके दिलों को सच्चे रास्ते पर लाना पसंद करेंगे? नहीं, यह तो देवदूतों का कार्य है, यह मेरा कार्य नहीं कि किसी को परिवर्तित करूं । क्या आप धैर्य का प्रतिरूप बन कर लोगों को अपने सदगुणों के आलोक से आकर्षित कर इस प्रकार परमात्मा का महिमा मंडन करना चाहेंगे? हु और नहीं, फकीर ने कहा, यदि लोग मेरी ओर आकर्षित होंगे तो वे परमात्मा से विमुख होने लगेंगे। तब आपकी क्या अभिलाषा है? देवदूतों ने पूछा। मैं किस बात की अभिलाषा करूं? मुस्कुराते हुए फकीर ने पूछा, यह कि परमात्मा मुझे अपना आशीष प्रदान करे, क्या इससे ही मुझको सब कुछ नहीं मिल जाएगा? देवदूतों ने कहा. आपको चमत्कार मांगना चाहिए या किसी चमत्कार की सामर्थ्य आपको बलपूर्वक दे दी जाएगी। बहुत अच्छा, फकीर बोला, यह कि मैं भलाई के महत् कार्य उन्हें जाने बिना कर सकूं।
SR No.034099
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages471
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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