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________________ लेकिन प्रेम के नाम पर लाखों नियम हैं। इसी तरह स्वतंत्रता तो एक है; लेकिन स्वतंत्रता के नाम पर कैदें अनेक हैं। और जब तक तुम सचेत और जागरूक नहीं होते हो, तुम कभी भी स्वतंत्र रूप से चलने के योग्य न हो सकोगे। ज्यादा से ज्यादा कैदें बदल लोगे। एक कैद से दूसरी कैद में चले जाओगे, और इन दोनों कैदों के बीच आने -जाने का मजा जरूर ले सकते हो। यही तो इस दुनिया में चल रहा है। कैथोलिक कम्मुनिस्ट बन जाता है, हिंदू ईसाई बन जाता है, मुसलमान हिंदू बन जाता है, और वे लोग इस बदलाव में बहुत ही खुश और आनंदित होते हैं –ही, जब वे एक कैद से दूसरी कैद में जा रहे होते हैं, तो उन्हें उन दोनों के बीच की यात्रा में थोड़ी स्वतंत्रता का अनुभव जरूर होता है। उन्हें थोड़ी राहत जरूर महसूस होती है। लेकिन फिर से वे उसी जाल में एक अलग नाम के साथ गिर जाते हैं। कोई सी भी विचारधारा हो, सिद्धांत हो, सभी कैदें हैं। मैं तुम्हें उन सभी के प्रति सजग रहना सिखा रहा हूं –यहां तक कि मेरी विचारधारा, मेरे सिद्धांत के प्रति भी तुम्हें सजग और जागरूक रहना सिखा रहा हूं। चौथा प्रश्न: अभी कुछ दिनों से मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं उड़ सकता हूं। और मैने सूक्ष्म रूप से यह भी अनुभव किया है कि मैं गुरुत्वाकर्षण से भी मुक्ति पा सकता हूं और बहुत ही ऊब के साथ मैने अपने शरीर के एक सौ पचास पौड के वजन को देखा है। क्या यह सिर्फ पागलपन है.....? नहीं, तुम दो आयामों के मिलन बिंदु हो। एक आयाम पृथ्वी से संबंधित है. गुरुत्वाकर्षण से, शरीर के एक सौ पचास पौंड वाले यथार्थ से -जो कि तुम्हें नीचे खींचता है। दूसरा आयाम परमात्मा के प्रसाद से संबंधित है परमात्मा से, स्वतंत्रता से, जहां तुम ऊपर, और ऊपर जा सकते हो और जहां पर बिलकुल भार नहीं होता है, निर्भार होता है। ध्यान में ऐसा होता है। बहुत बार गहरे ध्यान में तुम्हें अचानक ऐसा अनुभव होगा कि गुरुत्वाकर्षण खो गया है : अब कोई भी चीज तुम्हें नीचे की ओर नहीं पकड़ती है, अब यह तुम पर निर्भर करता है कि उड़ान लो या नहीं, अब यह पूरी तरह से तुम पर निर्भर है-अगर तुम चाहो तो आकाश में उड़ान
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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