SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ की आकांक्षा की भी-तभी निर्बीज समाधि का जन्म होता है। आकांक्षा की व्यर्थता की समझ से ही आकांक्षा गिरती है। निर्बीज समाधि की आकांक्षा नहीं की जा सकती। जब सभी प्रकार की आकांक्षाए गिर जाती हैं, तब अकस्मात निर्बीज समाधि फलित हो जाती है। इसका किसी भी तरह के प्रयास से कोई संबंध नहीं है। यह तो बस घटित होती है। समाधि तक तो प्रयास मौजूद रहता है, क्योंकि प्रयास के लिए भी किसी आकांक्षा की उद्देश्य की रही, जरूरत रहती है। जब आकांक्षा ही चली जाती है, तो फिर प्रयास भी चला जाता है। जब आकांक्षा ही गिर जाती है, तो फिर कुछ करने का प्रयोजन नहीं रह जाता है -न तो कुछ करने का प्रयोजन भोजन रहता है और न ही कुछ होने का प्रयोजन रह जाता है। व्यक्ति पूरी तरह से खाली और रिक्त हो जाता है, उसे ही बुद्ध ने 'शून्य' कहा है - वह अपने से आता है। और यही उसका सौंदर्य है: किसी भी प्रकार की आकांक्षा और अभीप्सा से अछता, किसी लक्ष्य या उद्देश्य की प्राप्ति दवारा दुषित नहीं: वह स्वयं में परिशुदध और निर्दोष होता है। यही है निर्बीज समाधि। इसके बाद फिर कोई जन्म शेष नहीं रह जाता है। बुद्ध अपने शिष्यों से कहा करते थे, 'जब तुम समाधि को उपलब्ध हो, तो सचेत हो जाना। समाधि पर ही रुक जाना, ताकि तुम लोगों की सहायता कर सको।' क्योंकि अगर समाधि पर ही न रुके, और निर्बीज समाधि फलित हो गई, तो तुम हमेशा के लिए गए. गते –गते, परागते! गए-गए, हमेशा -हमेशा के लिए गए! फिर तुम किसी की मदद नहीं कर सकते। तुमने यह 'बोधिसत्व' शब्द सुना होगा। मैंने यह नाम बहुत से संन्यासियों को दिया है। बोधिसत्व का अर्थ होता है, जिसे समाधि उपलब्ध हो गई है और वह 'निर्बीज समाधि' को आने नहीं दे रहा है। वह 'समाधि' पर ही रुक गया है, क्योंकि जब कोई समाधि पर ही रुक जाता है, तब वह लोगों की मदद कर सकता है, लोगों की सहायता कर सकता है। वह अभी भी इस संसार में मौजूद रह सकता है, कम से कम संसार से जोड़ने वाली एक कड़ी अभी भी मौजूद रहती है। बुद्ध के विषय में एक कथा है कि बुद्ध स्वर्ग के द्वार पर खड़े हैं, द्वार खुले हैं और उन्हें भीतर आने के लिए आमंत्रित किया जाता है, लेकिन वे बाहर ही खड़े रहते हैं। देवता उनसे कहते हैं, 'आप आएं भीतर। हम कब से आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।' लेकिन बुद्ध कहते हैं, 'अभी मैं कैसे भीतर आ सकता हूं? अभी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें मेरी आवश्यकता है। मैं द्वार पर ही खड़ा रहूंगा और लोगों को राह दिखाने में उनकी सहायता करूंगा। मैं सबसे अंत में प्रवेश करूंगा। जब सब लोग प्रवेश कर चुके होंगे, जब एक भी व्यक्ति बाहर न रह जाएगा, तब मैं प्रवेश करूंगा। अगर मैं अभी प्रवेश कर जाता हूं, तो मेरे प्रवेश के साथ ही द्वार फिर से खो जाएगा, और ऐसे बहुत से लोग हैं जो बुद्धत्व प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जो द्वार के निकट आ रहे हैं। मैं बाहर खड़ा रहंगा, मैं भीतर न आऊंगा, क्योंकि जब तक मैं यहां खड़ा रहंगा
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy