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________________ जरा अपने मन में झांकना, और तुम पाओगे वहा सब कितना गड़बड है। और यह गड़बड़ी परिस्थितियों ने नहीं बनायी है। यह सब गड़बड़ी तुम्हारे भीतर मौजूद है। परिस्थितियां तो बस ज्यादा से ज्यादा बहाना हैं। तुम सोचते हो कि लोग तुम्हें क्रोधित कर देते हैं, तो कभी इस प्रयोग को करके देखना। इक्कीस दिन का मौन रखना। तुम मौन में हो और अचानक, बिना किसी कारण के -चूंकि अब कोई व्यक्ति तो तुम्हारे सामने मौजूद नहीं है तुम्हें क्रोधित कर देने के लिए तुम्हें मालूम पड़ेगा कि तुम कई बार क्रोधित हो जाते हो। तुम सोचते हो सुंदर स्त्री या सुंदर पुरुष के दिख जाने के कारण तुम कामवासना से भर जाते हो? तुम गलत सोचते हो। जरा इक्कीस दिन का मौन रखकर देखना। अकेले रहना और तुम्हें कई बार ऐसा लगेगा कि अचानक, बिना किसी कारण के अकारण ही तुम कामवासना से भर जाते हो। वह वासना तुम्हारे भीतर ही है। एक बार दो महिलाएं आपस में बातचीत कर रही थीं। उनकी बातचीत मेरे कानों में भी पड़ गई, इसमें मेरा कोई कसूर नहीं है। श्रीमती ब्राउन बहुत गुस्से से बोली 'देखो श्रीमती ग्रीन। श्रीमती ग्रे ने मुझे बताया है कि तुमने उसे वह राज बता दिया है जिस राज को बताने के लिए मैंने तुम से मना किया था।' श्रीमती ग्रीन: 'ओह, वह कितनी खराब है। और मैंने उससे कहा था कि वह तुम्हें न बताए कि मैंने उसे बता दिया है।' श्रीमती ब्राउन: 'अच्छा सुनो, अब उससे मत कह देना कि मैंने तुम्हें बता दिया है कि उसने मुझे बताया। यह है मन का शोर, जो चलता ही रहता है, चलता ही रहता है। इस मन के शोर को किसी जोर - जबर्दस्ती से नहीं, समझ के द्वारा ठहराना है। पहला सूत्र: 'संयम को चरण-दर-चरण संयोजित करना होता है। पतंजलि अकस्मात संबोधि को उपलब्ध हो जाने की बात नहीं करते हैं; और वह सभी के लिए है भी नहीं। अकस्मात संबोधि तो बहुत ही दुर्लभ घटना है, वह तो कुछ थोड़े से असाधारण लोगों को ही घटित होती है। और पतंजलि की दृष्टि बहुत ही वैज्ञानिक है वे थोड़े से असाधारण लोगों की फिक्र नहीं करते हैं। पतंजलि इसीलिए नियम का अन्वेषण करते हैं। और पतंजलि के अनुसार जो लोग असाधारण भी हैं, जिन्हें अकस्मात संबोधि की प्राप्ति भले ही हो जाती हो, फिर भी वे नियम को ही सिद्ध करते हैं, और कुछ नहीं। और जो लोग असाधारण हैं वे तो अपना मार्ग स्वयं भी तय कर सकते हैं, उनके लिए सोचने -विचारने की कोई जरूरत नहीं। एक साधारण मनुष्य धीरे - धीरे, एक
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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