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________________ ध्यान रखना, या तो तुम्हारे पास प्रश्न होते हैं और या फिर उत्तर होते हैं। दोनों साथ-साथ नहीं होते। जब प्रश्न होते हैं, तो उत्तर नहीं होता है। मैं तो उत्तर दे दूंगा, लेकिन वह उत्तर तुम तक पहुंचेगा नहीं। और जब वह तुम तक पहुंचेगा, तब तक तुम उस उत्तर को फिर से हजारों – हजारों प्रश्नों में बदल चुके होंगे जब तुम्हारे पास प्रश्न होते हैं, तो प्रश्न ही होते हैं जब तुम्हारे पास उत्तर होता है, और मैं इसे 'उत्तर' कहता हूं बहुत सारे उत्तर नहीं, क्योंकि सभी प्रश्नों का केवल एक ही उत्तर है - तो जब तुम्हारे पास उत्तर होता है, तो प्रश्न नहीं होते हैं। अगर तुम्हें वह उत्तर चाहिए, जो कि सभी प्रश्नों का उत्तर है, तो ध्यान करो। अगर तुम प्रश्न ही करते जाना चाहते हो, तो ध्यान करना बंद कर दो। और एकमात्र उत्तर ध्यान ही है। आज इतना ही। प्रवचन 63 आंतरिकता का अंतरंग योग - सूत्र: तस्य भूमिष विनियोगः ।। 611 संयम को चरण-दर-चरण संयोजित करना होता है। जयमन्तरडगं पूर्वेभ्यः ।। 7।। धारणा, ध्यान और समाधि-ये तीनों चरण प्रारंभिक पांच चरणों की अपेक्षा आंतरिक होते हैं। तदपि बहिरङ्गं पूर्वेभ्यः ॥ 811 लेकिन निर्बीज समाधि की तुलना में ये तीनों बाम ही है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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