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________________ अर्थ है समग्ररूपेण सुनने का -तब तुम अपने दिमाग के कंप्यूटर को और स्मृति को भूल जाना, उसकी कोई आवश्यकता भी नहीं है। किसी विश्वविद्यालय के परीक्षा भवन में जाकर परीक्षा दे आना सच्ची परीक्षा नहीं है। असली परीक्षा तो अस्तित्व के विश्व विद्यालय में ही होगी। वहीं मिलेगा प्रमाण कि तुमने मुझे सुना है या नहीं। अचानक तुम पाओगे कि तुम कुछ बदल गए हो, तुम अब अधिक प्रेमपूर्ण हो गए हो, परिस्थिति तो वही पुरानी की पुरानी है लेकिन प्रत्युत्तर तुम से कुछ अलग ही आ रहा है। अगर कोई तुम्हें परेशान करना भी चाहे, तो तुम परेशान नहीं होते हो। कोई क्रोध दिलवाने की कोशिश भी करे, तो भी तुम मौन और शांत ही बने रहते हो। कोई अपमान भी करता है, तो भी तुम अछूते के अछूते ही बने रहते हो। जैसे कि कमल पानी में होता है, लेकिन फिर भी पानी उसे छूता नहीं है, ठीक ऐसे ही तुम संसार में रहोगे, लेकिन संसार तुम्हें छुएगा नहीं। तब तुम अनुभव कर सकोगे कि मेरे साथ रहने से तुम्हें क्या उपलब्ध हुआ है। यह अस्तित्व का अस्तित्व से हस्तांतरण है, ज्ञान का संप्रेषण नहीं। अंतिम प्रश्न: मैं आप से कुछ छोटे- छोटे मजेदार प्रश्न पूछना चाहता हूं जैसे आप प्रवचन के अंत में लेते हैं और आप से यह सुनना चाहता हूं कि (यह प्रश्न धीरेन्द्र का है।' अगर मैं ध्यान करना पारी रखू तो क्या ऐसा हो सकेगा? कभी नहीं। और तब ध्यान करना बंद कर दो। अगर तुम प्रश्न चाहते हो, तो कृपा करके ध्यान मत करो। क्योंकि अगर तुम ध्यान करोगे, तो सभी प्रश्न समाप्त हो जाएंगे, केवल उत्तर ही बच रहोगे अगर प्रश्न पूछने हैं, तो ध्यान करना बंद कर दो। तब तुम हजारों प्रश्न पूछ सकते हो। और सभी प्रश्न मूढ़तापूर्ण और हास्यास्पद ही होते हैं, इसलिए उनके बारे में चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन तब तुम्हें केवल एक ही बात का खयाल रखना होगा. ध्यान मत करना। अगर तुम मूढ़तापूर्ण और हास्यास्पद प्रश्न ही करना चाहते हो, तो ध्यान मत करना। और मैं फिर। कहता हूं, सभी प्रश्न हास्यास्पद और मूढ़ता से भरे ही होते हैं। अगर ध्यान करोगे, तो वे सभी प्रश्न खो जाएंगे; केवल मौन ही रह जाएगा। और मौन ही उत्तर है।
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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