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________________ जो भी कहीं तैयार है, उस तक संदेशा पहुंच ही जाएगा और वह कभी न कभी आ ही जाएगा। वह इस दिशा में बढ़ने ही लगेगा। वह शायद जानता भी न हो कि वह कहां जा रहा है। हो सकता है वह भारत घूमने के लिए आ रहा हो, मेरे पास आ भी नहीं रहा हो। तब हो सकता है कि बंबई के एअर पोर्ट से उसकी दिशा बदल जाए, वह पूना की ओर बढ़ने लगे, वह पूना आ जाए। या फिर यह भी हो सकता है वह पना में मझसे मिलने न आ रहा हो, यहां अपने किसी मित्र से मिलने आ रहा हो। घटनाएं रहस्यपूर्ण ढंग से घटती हैं, गणित की तरह हिसाब-किताब से नहीं। लेकिन इन सब बातों की चिंता तुम मत करना। यह एक व्यवस्था से संचालित हो रही हैं या कि अपने से हो रही हैं, इससे तुम्हें कोई सरोकार नहीं होना चाहिए। तुम यहां पर हो, तो इस स्वर्ण अवसर को मत चूक जाना। और मैं तुम्हें मंजिल ही दे देने को तैयार हूं। इसलिए मार्गों की, विधियों की बात ही मत पूछो। और मैं तुम्हारे सामने सत्य को उदघटित कर देने के लिए तैयार हूं इसलिए तर्क की बात ही मत उठाना। अंतिम प्रश्न : प्यारे भगवान मैं आपका ध्यान इस ओर दिलाना चाहता हूं कि आपके आश्रम की व्यवस्था इस समय तीन धूर्तों के हाथ में है जो सुंदर और सरल स्त्रियों के भेष में हैं हो सकता है यह प्रश्न आपको अच्छा न लगे इसलिए मैं उपनाम का उपयोग कर रहा हं-नीमो। मझे कोई बात नाराज नहीं करती, मेरी प्रसन्नता- अप्रसन्नता का इनसे कोई लेना देना नहीं है। और इसे खयाल में ले लेना कि परमात्मा तक को भी संसार का काम-काज चलाने के लिए शैतान की मदद लेनी पड़ती है। शैतान के बिना तो वह भी संसार का काम-काज चला नहीं पाता है। इसलिए मुझे शैतानों को चुनना ही पड़ा। और फिर मैंने सोचा, इसे कुछ सुंदर ढंग से ही क्यों न किया जाए? -उन्हें स्त्रियां ही होने दो। फिर सुरुचि और सौंदर्य से ही बात क्यों न घटे? शैतानों को तो आना ही है। तो मैंने स्त्रियों को चुना-अभी तो और भी चाहिए। और फिर नाम को छिपाने की या उपनाम की भी कोई जरूरत नहीं है, जरा भी जरूरत नहीं है। तुम बिलकुल बता सकते हो कि तुम कौन हो, नाम छिपाने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तुमसे एक कथा कहना चाहूंगा:
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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