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________________ द्वारा, अपनी शीतलता के द्वारा, अपनी ठंडक के द्वारा-और.. और अगर कहीं कोई नदी या सरिता बह रही होती है, तो वह हवाओं के माध्यम से चारों ओर अपना संदेश फैला देती है। और कोई थके - मांदे, प्यासे यात्री को जब वह ठंडी हवा छूती है, तो वह समझ लेता है कि अब इसी ओर जाना है, यही मार्ग है। इधर कहीं ही पानी का झ रना होगा। न तो नदी को क् पूम होत है यात्री के बारे में कि वह वहां है या नहीं, और न ही यात्री को कुछ ठीक –ठीक मालूम होता है कि नदी वहां है या नहीं, लेकिन तो भी दोनों एक दूसरे को खोज लेते हैं : बिना कहे ही संदेश स्वयं पहुंच जाता है और यात्री पता लगा लेता है कि यह ठंडी हवा कहां से आ रही है। इस खोज में कई बार वह गिरता है, चोट खाता है, भटकता है, लेकिन फिर भी शीतल हवा का कहीं कुछ पता नहीं रहता; वह फिर से प्रयास करता है। गलतियां कर-कर के उसे ज्ञात हो जाता है कि अगर वह एक सुनिश्चित दिशा में बढ़ता चला जाता है, तो हवा शीतल से शीतल होती चली जाती है। और जलधारा ने अपना संदेश किसी पते पर नहीं भेजा है। वह किसी एक के लिए नहीं होती। वह तो किसी भी उस थके हुए यात्री के लिए होती है, जो प्यासा है। मेरे साथ भी घटनाएं इसी ढंग से घट रही हैं। ऐसा नहीं है कि मैं यहां कुछ आयोजन कर रहा हूं। वह बात ही करीब-करीब पागल कर देने वाली होगी। मैं कैसे कोई व्यवस्था बना सकता है? यह कोई कार्य और कारण का नियम तो है नहीं; यह तो समक्रमिकता, सिन्क्रानिसिटी का नियम है। मैं यहां पर मौजूद क तरह की शांत और शीतल हवाएं चारों ओर संसार में बह रही हैं। जहां कहीं भी कोई प्यासा होता है, वह मेरे पास आने की अभीप्सा से भर जाता है। इसी तरह से तो तुम सब लोग आए हो। और जब तुम यहां पर होते हो, तो यह तुम पर निर्भर करता है कि तुम पानी पीते हो या नहीं। तुम्हारा मन तुम्हारे लिए अड़चनें पैदा कसता है, क्योंकि अगर तुम पानी पीना चाहते हो तो पानी पीने के लिए तुम्हें नीचे झुकना पड़ेगा, समर्पण करना पड़ेगा, अपने हाथों की अंजुली बनाकर नदी की ओर झुकना पड़ेगा; केवल तभी तुम्हें नदी उपलब्ध हो सकेगी। केवल तभी तुम पानी को पीकर अपनी प्यास बुझा सकते हो, वरना तुम किनारे पर ही खड़े रह जाओगे। तुम में से कई जो नए आए हैं, वे महीनों से किनारे पर ही खड़े हैं-वें प्यासे हैं, अत्यधिक प्यासे हैं लेकिन अहंकार कहता है, 'ऐसा मत करना, झुकना मत। स्वयं को समर्पित मत करना।' फिर नदी तुम्हारे पास से बहती रहेगी और तुम प्यासे के प्यासे ही खड़े रह जाओगे। यह सब तम पर निर्भर है। इसके लिए किसी तरह का आयोजन या व्यवस्था इत्यादि नहीं है। बहुत से लोग यही सोचते हैं कि मैं कोई सूक्ष्म संदेश भेजता हूं, फिर तुम आते हो। नहीं, संदेशा तो भेजा जा रहा है, लेकिन किसी नामपते पर नहीं। वह किसी के नाम से नहीं भेजा जाता-ऐसा हो भी नहीं सकता। लेकिन इस संसार में
SR No.034098
Book TitlePatanjali Yoga Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages505
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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